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श्यामास्वप्न

सखियाँ जान भी गईं तो क्या हानि, लोक जानता है और जानैगा तो इस्से भला यही है कि सखीं जान जायँ . भला ए तो बने बिगरे में काम आवैगी और लोग क्या साथ देंगे--ऐसा सोच विचार मन में कहा "कुछ चिंता नहीं". मैं बोली "राम राम तुम कभी मेरे लिये बुरा कहोगी वा करोगी, यह तुम्हारी बड़ी भूल है जो ऐसा सोचती हो, भला अब तुम्हीं कहो क्या बात है ?"

सुलोचना ने कहा--- -"मैं क्या जानूँ वृदा पेड़ा पेड़ा चिल्लाती है, उसी से पूछ"-

वृंदा हँसी--बड़े जोर से खख्खामार के हँसी और बोली--"बुरा न मान तो अब कही डारूँ, कहने में क्यों रुकूँ". मैंने कहा--"भला तुझ से कभी बुरा माना है कि आज ही मानूंगी--कह न जो कहना हो"-छाती धरक उठी--करेजा कँप उठा--साहस कर सुनने लगी .

"उस दिन अटारी का ब्यौरा अब तूही कह डार-क्या क्या हुआ मैंने क्या नहीं देखा पर तू मुझसे आज तक छिपाये गई-क्या मैं मिट्टी पत्थर की थोड़ ही बनी हूँ जो इतना देख सुन के भी न जानूं- मैंने तुझसे कुछ नहीं कहा-आज तक चुप रही पर सुलोचना से सब कुछ कह दिया था-विश्वास न हो तो पूछ ले . फिर जब तेरे चितचोर ने मुझे जाते समय बुलाया और विलाप किया-क्या वह सब मैं नहीं जानती; मैं (ने) तो तेरे अनजाने में इसी छेद (छेद को उंगली से दिखाकर) से सब कुछ देख लिया था . कुछ चिंता की बात न थी . मुझसे कहती तो क्या मैं दगा देती, पर तेरा सुभाव सदा का कपटी है . जनम भर एक साथ रही तो भी जी की मुझसे न कही . भला कुछ हानि नहीं- क्या अब भी छिपावैगी ? दाई से भी कहीं पेट छुपा है . पेड़ा क्या आज तुम मुझे न खिलावोगी . मैंने कल्ह संध्या को टोले में श्यामसुंदर के आने की चर्चा सुनी-सो क्या तू नहीं जानती . कैसी अजान बन गई है—देख तो सुलोचना तू इसकी चतुराई नहीं परखती क्या ?-तो .