पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १५ )

ठाकुर सो कबि भावत मोहिं जो राजसभा में बड़प्पन पावे ।
पंडित और प्रबीनन को जोइ चित्त हरै सो कवित्त कहावै ॥

इसके विपरीत आधुनिक युग का उपन्यास सामान्य जनता का चित्त हरने वाला होता है जिसमें न तो हरि नाम की कथा होती है न प्रेम का प्रशस्त पंथ निर्दिष्ट होता है । इसमें राजसभा में बड़प्पन दिलाने वाले अलंकारों और तुक अक्षरों को जोड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती;यह तो सीधी सादी बोलचाल की भाषा में लिखी हुई सीधी सादी एक कथा होती है । साधारण जनता के हृदय में कुतूहल वृत्ति जगाने वाला,साधारण साक्षर जनता का आश्रय लेकर पनपने वाला यह साहित्य-रूप आधुनिक जनतंत्र का साहित्यिक प्रतिनिधि है जिसमें साधारण जनता की आशा, आकांक्षा साकार हो उठती है। साधारण जनता की वस्तु होने के कारण ही उपन्यास प्रायः यथार्थ जीवन की ओर उन्मुख रहता है । उपन्यासों की यथार्थवादी प्रवृत्ति रीतिकालीन कविता की चमत्कारवादी प्रवृत्ति की ठीक उल्टी है, इसी कारण तो अम्बिकादत्त व्यास ने अपने आश्चर्य वृत्तांत' में रीतिकालीन कवियों को लक्ष्य करके लिखा है:

छि छि कवियों के कहे अनुसार एक ऐसी मूर्ति बनाई जाय जिसमें मुँह के स्थान में चाँद या कमल लिख दिया जाय और आँखों के ठिकाने दो मछली और आँखों के कोनों के बदले दो चोखे चोखे तीर बना दिये जायँ, त्यों ही कान के ठिकाने सीप, गले के बदले कबूतर, छाती के स्थान पर हाथी का सिर बना दिया जाय, चोटी के ठिकाने मोटी सी काली नागिन, दोनों बाँह कमल की नाल, हाथ कमल, कमर का स्थान एक दम खाली छोड़ दें और यों ही कमर के नीचे भी अपना जोर लगाते चले जाय ; हम आप लोगों से पूछते हैं कहिये तो यह कैसी डरावनी राछसी ऐसी मूरत तयार होगी । (पृ० ५९)