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श्यामास्वप्न

काको कीन्ह बिगार जौन दुख झेले बरसन

दुर्लभ हाय बिचारि अहो श्यामा तव दरसन ॥१७॥

दोहा

कीजै कौन उपाव अब दई भयो मुहिं वाम ।

तनिक दया चीन्हीं नहीं हाय बिसायौ राम ॥१८||

चलत न दीन्ही दरस टुक रहे बिसूरत प्रान।

निकसे सठ निर्लज नहिं हठ करि रहे निदान ॥१६॥

जरी धरी परबस परी परी कसाई हाथ ।

इची खिची गिरमा गसी गैया लो (लौं) तुअ साथ ॥२०॥

जेहि नित नैना निरखते रखते और न काम ।

रूप परखते और नहिं तिन कहँ भौ प्रभु वाम ॥२१॥

सोवत जागत उठत अरु बैठत बोलत बैन ।

जेहिं देखत वे दिन गए सो केहिं देखें नैन ॥२२॥

कबहुं अटारी देहरी कबहुँ कियारी बीच ।

कबहुँ निवारी वीनती ठठकि किवारी खींच ॥२३॥

कबहुँ नीर मजत कबहुँ नदी तीर की भीर ।

तौह धीर सरीर नहिं चलत नैन जिमि तीर ॥२४॥

नदी तीर एड़ी घिसति झुकि झुकि झझकि हटै न ।

पियहिं हसति निरखति रहति चलत चपल चहुँ नैन।।२५||

कभू न्हात बतरात कहुँ कहुँ निस्वारत केश।

कभू घिसत एडीन झुकि निरखत पियको वेश ॥२६॥

तजति न सो ठावहिं मुरकि निरखति पिय मुखचंद ।

वसन दाबि दंतन दुविच पैरत सलिल अमंद ॥२७॥

कै अागू पाछू कबहुँ श्रावत पिय के संग ।

जौं अचांक मग भेटती विहसति करि बहु रंग ॥२८॥

मुख लिलार सेंदुर सहित माँग सारी बाल ।