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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/८५

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श्यामास्वप्न

करमा

श्रामा डार कोइली सुवा बोलै कागा-ध्रुव--
पर्रा में लालभाजी छानी मा श्रादा
तोर मुटियारी मजा भंगै राजा"-श्रामा

धानों के खेत जो गरीबों के धन हैं इस ग्राम की शोभा बढ़ाते हैं मेरा इसी ग्राम का जन्म है . मेरे पिता का वंश और गोत्र दोनों प्रशंस-नीय हैं . मेरे पुरुषा प्रथम तो ब्रह्मावर्त्त से उत्कल देश में जा बसे थे.वहाँ बिचारे भले भले आदमियों का संग करते करते कुछ काल के अनंतर उत्कल देश को छोड़ राजदुर्ग नामक नगर में जा बसे . उत्कल देश के जलवायु अच्छे न होने के कारण वह देश तजना पड़ा . ऋषि वंश के अवतंस हमारे प्रपितामहादिक पूजा पाठ में अपने दिन बिताते रहे : कई वर्षों के अनंतर दुर्भिक्ष पड़ा और पशुपक्षी मनुष्य इत्यादि सब व्याकुल होकर उदर पोषण की चिंता में लग गए उन लोगों की कोई जीविका तो रही नहीं, और रही भी तो अब स्मृति पर भ्रांति का जलदपटल छा जाने के हेतु सब काल ने विस्मरण करा दिया. नदी नारे सूख गए जनेऊ सी सूक्ष्मधार बड़े बड़े नदों की हो गई • मही जो एक समय तृणों से संकुल थी बिलकुल उससे रहित हो गई . सावन के मेघ भयावन शरत्कालीन जलदों की भांति हो गए . प्यासी धरनी को देख पयोदों को तनिक दया न आई . बिचारे पपीहा के पीपी रटने पर भी पयोद न पसीजा और न उसके चंचुपुट में एक बुंद निचोया : इस धरनी के भूखे संतान क्षुधा से क्षुधित होकर ब्याकुल घूमने लगे . गैयों की कौन दशा कहे ये तो पशु हैं . खेत सूखे साखे रोड़ोंमय दिखाने लगे . शालि के अंकुर तक न हुए किसानों ने घर की पूँजी भी गँवा दी . बीज बोकर उसका एक अंश भी "यह कलिजुग नहीं करजुग है इस हाथ ले उस हाथ दे"-इस कहावत को भी झूठी कर दिया अर्थात् कृषी लोगों ने कितना ही पृथ्वी को बीज दिया पर उसने कुछ भी न दिया . छोटे छोटे बालकों को न पाया.