पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२१४

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HLIMHATHMA nnar. mInMNAHMILAM भक्तिसुधास्वाद तिलक। जैसे सातों दिनों का एक “सप्ताह", तथा बारहो महीनों का एक “वर्ष” हुश्रा करता है, वैसे ही सत्ययुग त्रेता द्वापर कलियुग इन चारों की एक "चौकड़ी” (“चतुर्युग") जानिये । तथा ऐसे ऐसे सहस्र चतुर्युगों वा १००० चौकड़ियों का, केवल “एक दिन श्रीब्रह्माजी का" होता है, सो ब्रह्माजी के प्रत्येक दिन में चौदह मनु हो जाया करते हैं। अर्थात् एक एक मनु, (१०००+१४) कुछ ऊपर एकहत्तर चतुर्युगों पर्यन्त रहा करते हैं। जब एक मनु की अवधि पूरी होती है तो उनके साथही साथ उस समय के इन्द्र, सप्तर्षि, मनुपुत्र, भगवदवतार, और देवता ये छयो पहिले की जगह नए नए होते हैं। प्रत्येक समूह (इन छों का) एक एक "मन्वन्तर" कहलाता है, जब चौदह मन्वन्तर हो चुकते हैं, अर्थात् चौदहो (1) मनु (२) इन्द्र (३) सप्तर्षि (४) मनुपुत्र (५) भगवदवतार (६) देवता की एक एक प्रावृति हो चुकती है, तब एक सहस्र चौकड़ियाँ व्यतीत होती हैं वा श्रीब्रह्माजी का एक दिन पूरा होता है । उतने ही काल की ब्रह्माजी की रात्रि होती है। ऐसे ऐसे रात्रि दिनों से जब एक सौ वर्ष पूरे होते हैं, तब श्रीराम इच्छा से पूर्व ब्रह्मा के स्थान में नए ब्रह्माजी होते हैं। प्रभु की रचना की महिमा अपार तथा अकथनीय है ॥ ___ सर्वया। "वेद थके कहि, तन्त्र थके कहि, ग्रन्थ थके निशि वासर गाते । शेष थके, शिव इन्द्र थके पुनि खोज कियो बहु भाँति विधाते । पीर थके, नी फकीर थके, पुनि धीर थके, बहु बोलि गिराते । "सुन्दर" मोन गही सिध, साधक, कौन कहै उसकी मुख बाते॥" (१०७)श्रीशरभंगजी। महामुनि श्रीशरभंगजी की स्तुति जितनी की जाय थोड़ी है। छनोट-एक चिउँटा चिउँटी को देखकर एक समय श्रीकृष्ण भगवान् के हँसने पर श्रीरुक्मिणीजी के पूछने के उत्तर मे भगवत् ने कहा कि जो चिउँदा स्त्री के पीछे दौड़ा जाता है उसको मैं इकहत्तर वार इन्द्र बना चुका हूँ तब भी उसकी दृप्ति भोग से नही हुई, कामवश दौड़ा जाता है उसी पर हंसी आई है।