पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५९९

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५८० पल - ms . - . . .- Ad..am -1IME- श्रीभक्तमाल सटीक । कृपापात्र जान हृदय से लगा लिया और नई भीत गिरवादी क्योंकि उस- से स्वप्न का प्रमाण मिला। प्रेम की ग्राहकता की जय, प्रेमियों की जय ।। चौपाई। "कह रघुपति सुनु भामिनि वाता । मानौ एक प्रेम को नाता ॥ १०१।१०२ श्रीवर्द्धमान। श्रीगंगलजी। (४२९) छप्पय । (४१४) "बर्द्धमान,” "गंगल" गंभीर, उभै थंभ हरिभक्ति के॥ श्रीभागीत बखानि, अमृतमय नदी बहाई। अमल करी सब अवनि,तापहारक सुखदाई॥भक्तनसों अनुराग दीन सों परमदयाकर । भजन जसोदानन्द सन्तसंघट के आगर॥भीषमभट्ट अंगज उदार, कलियुग दाता सुगति के । “बर्द्धमान," "गंगल" गंभीर उभै थंभ हरिभक्ति के ॥२॥(१३२) (१) श्रीवर्द्धमानजी। (२) श्रीगंगलजी। (३) श्रीभीष्मभट्टजी॥ वात्तिक तिलक। श्रीवर्द्धमानजी और श्रीगंगलजी, दोनों भाई "श्रीभीष्मभट्ट" जी के पुत्र बड़े गम्भीर, उदार, त्रिताप हरनेवाले, सुख देनेहारे, बड़े दीन- दयाल,भगवद्भक्ति के दो खम्भे, कलि के जीवों के सद्गति के देनेवाले हुए, श्रीमद्भागवत् की कथा कहने में मानों अमृत की नदी बहाते थे, संसार भर में आप दोनों का यश विदित था, हरिभक्तों से बड़ा अनुराग रखते थे, सन्तसमूह में अग्र अथवा सन्तों के संग में श्रागर और श्रीयशोदा- नन्दनजी के भजन में निपुण थे॥