पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२१

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६ श्रीमद्भगवद्गीता आप, अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम । नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥ ७ ॥ है द्विजोत्तम ! हमारे पक्षके भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारी- के लिये मैं उनके नाम बतलाता हूँ जो कि मेरी सेनाके नेता हैं ॥ ७ ॥ भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिजयः । अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ ८॥ पितामह भीष्म, कर्ण और रणविजयी कृपाचार्य, वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र ( भूरिश्रवा) ॥ ८॥ अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥ ६॥ इनके सिवा अन्य भी बहुत-से शूरवीर मेरे लिये प्राण देनेको तैयार हैं, जो कि नाना प्रकारके शस्त्रास्त्रोंको धारण करनेवाले और सब-के-सत्र युद्धविद्या में निपुण हैं ॥ ९॥ अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् । पर्याप्तं विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥ १० ॥ ऐसी वह पितामह भीष्मद्वारा रक्षित हमारी सेना सब प्रकारसे अजेय है और भीमद्वारा रक्षित इन पाण्डवोंकी यह सेना सहज ही जीती जा सकती है ।। १०॥ अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः । भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ ११ ॥ अतः आपलोग सब-के-सब, सभी मोरचोंपर अपनी-अपनी जगह डटे हुए, केवल पितामह भीष्मकी ही रक्षा करते रहे ॥ ११ ॥ तस्य संजनयन्हर्ष कुरवृद्धः पितामहः । सिंहनादं बिनद्योच्चैः शङ्ख दध्मौ प्रतापवान् ॥ १२ ॥ इसके बाद कुरुवंशियोंमें वृद्ध प्रतापी पितामह भीष्मने उस दुर्योधनके हृदयमें हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वरसे सिंहके समान गर्जकर शङ्ख बजाया ॥ १२ ॥ ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १३ ॥ फिर एक साथ ही शङ्ख, नगारे, ढोल, मृदंग और रणसिंगा. आदि बाजे बजे; वह शब्द बड़ा भयङ्कर हुआ ॥१३॥