पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२३

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८ श्रीमद्भगवद्गीता हे पृथ्वीनाथ ! फिर उस शस्त्र चलनेकी तैयारीके समय युद्धके लिये सजकर डटे हुए धृतराष्ट्रपुत्रों- को देखकर कपिध्वज अर्जुन धनुष उठाकर श्रीकृष्णणसे इस तरह कहने लगा कि, हे अच्युत ! जबतक मैं इन खड़े हुए युद्धेच्छुक वीरोंको भलीभाँति देखें कि इस रण-उद्योगमें मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना है तबतक आप मेरे स्थको दोनों सेनाओंके बीचमें खड़ा रखिये ॥२०, २१, २२ ॥ योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बु युद्ध प्रियचिकीर्षवः ॥ २३ ॥ ( मेरी यह प्रबल इच्छा है कि ) दुर्मति दुर्योधनका युद्ध में भला चाहनेवाले जो ये राजालोग यहाँ आये हैं, उन युद्ध करनेवालोंको मैं भली प्रकार देखू ॥ २३ ॥ संजय उवाच- एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत । सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ २४ ॥ भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् । उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥ २५ ॥ संजय बोला-हे भारत ! निद्राजित् अर्जुनद्वारा इस प्रकार प्रेरित हुए श्रीकृष्ण उस उत्तम रथको दोनों सेनाओं के बीचमें भीष्म और द्रोणाचार्यके तथा अन्य सब राजाओंके सामने खड़ा करके बोले, हे पार्थ ! इन इकठे हुए कौरवोंको देख ॥ २४, २५!! तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ - पितामहान् । आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥२६॥ श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि । तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥ २७ ॥ कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् । अर्जुन उवाय - दृष्ट्वेमं खजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥ २८ ॥ सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति । वेपथुश्च : शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ॥ २६ ॥ फिर वह पृथापुत्र अर्जुन वहाँ दोनों सेनाओंमें खड़े हुए अपने ताऊ-चाचोंको, दादोंको, गुरुओंको, मामोंको, भाइयोंको, पुत्रोंको, पौत्रोंको, मित्रोंको, ससुरोंको और सुहृवर्गको देखने लगा । वहाँ उन सभी कुटुम्बियोंको खड़े हुए देखकर अत्यन्त करुणासे विरकर वह कुन्तीपुत्र अर्जुन शोक करता हुआ इस प्रकार कहने लगा, हे कृष्ण ! सामने खड़े हुए युद्धेच्छुक खजन-समुदायको देखकर मेरे सब अङ्ग शिथिल हो रहे हैं, मुख सूख रहा है, मेरे शरीरमें कम्प और रोमाञ्च होते हैं ॥ २६, २७, २८, २९॥ TE