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( ६९ ) मंदाकिनी कृत भरतोद्बोधन [इद्रवज्रा छद] भागीरथी रूप अनूप कारी। । चद्राननी . लोचन-कज-धारी॥ . ।' वाणी बखानी मुख तत्त्व सोध्यौ । रामानुजै आनि प्रबोध बोध्यौ ।। ७४॥ [उपेद्रवज्रा छद] अनेक ब्रह्मादि न अत पायौ । अनेकधा वेदन गीत गायौ ।। तिन्हें न रामानुज बधु जानौ । सुनौ सुधी केवल-ब्रह्म मानौ ॥५॥ निजेच्छया भूतल देहधारी । अधर्म-सहारक धर्म-चारी ॥ चले दशग्रीवहिँ मारिबे को। तपी व्रती केवल पारिवे१ को ॥६॥ उठो हठी होहु न काज कीजै । कहै कछू राम, सो मानि लीजै ॥ अदोष तेरी सुत मातु सोहै । सो कौन माया इनको न मोहै ।। ७७।। (१) पारिवे = पालने।