पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१८

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( १२ ) केशवदास महाकवि माने जाते हैं। यद्यपि 'महाकवि' से बड़े कवि का भी अभिप्राय निकल सकता है फिर भी साहित्य-शास्त्र की रूढ़ि के अनुसार रामचद्रिका में महाकाव्यत्व 'महाकवि' शब्द विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है । महाकवि का अभिप्राय 'महाकाव्यकार' समझा जाता है। इस अर्थ मे केशव का महाकवित्व बहुत कुछ राम- चद्रिका के ही ऊपर निर्भर है। रसिकप्रिया और कविप्रिया हिंदी-साहित्य के इतिहास मे साहित्यशास्त्र के महत्त्वपूर्ण प्रथ हैं। इनमें केशव का वह शक्तिमान् प्रयत्न निहित है जिसने हिंदी के क्षेत्र मे साहित्य-शास्त्र के अध्ययन का अबाध मार्ग खोल दिया। परंतु ये ग्रथ उन्हे आचार्य-पद दिला सकते हैं, महाकवि नहीं बना सकते। वीरसिंहदेव-चरित और जहाँगीर- जस-चद्रिका ऐसे शिथिल अथ हैं कि किसी भी साहित्यिक की नजरों मे उनका मूल्य नहीं चढ़ा है। रामचंद्रिका ही एक ऐसा ग्रथ है जो किसी तरह महाकाव्य कहा जा सकता है। ___ महाकाव्य होने के लिये किसी भी काव्य मे कुछ बातों का होना आवश्यक है, जिनके हुए बिना हम उसे महाकाव्य न कह सकेगे। महाकाव्य की सबसे पहली आवश्यकता है उसमे काफी लबे सर्गबद्ध प्रबध का होना। महाकाव्य प्रवध- काव्य है। किसी काव्य की महत्ता इसी बात मे है कि वह मानव-जीवन का सर्वागीण स्पर्श करे। काव्य को यह व्यापकता न तो मुक्तक गीतों में प्राप्त हो सकती है और न छोटे उपाख्यानों