( १४ ) उनसे बढकर नायक ही कौन मिल सकता है ? रामचंद्र ही की जीवन-गाथा को लेकर रामचद्रिका की रचना हुई है। परतु महाकाव्य के लिये कथानक ( वस्तु ) ही का होना काफी नहीं है। महाकाव्य का प्रबंध होना आवश्यक है। नाटक में भी कथानक होता है परंतु उसे प्रबध नहीं कहते। प्रबंध बँधा हुआ होना चाहिए, उसमें कथानक की जंजीर मे की सब कडियों का स्पष्ट दर्शन होना चाहिए। नाटक मे अगर बीच बीच की कड़ियाँ छूटती जायँ तो भी काम चल जाता है किंतु प्रबध में नहीं। राम- चद्रिका में कहीं भी कथानक की शृखला टूटी हो, यह नहीं देखा जाता परतु फिर भी उसमें प्रबध की सी सु-बद्धता नहीं मिलती। इसका कारण उसमें प्रयुक्त दृश्य काव्य के से संवादों की बहुलता है। सवादों का अधिकतर कवि की ओर से विवरण नहीं है। यह अमुक व्यक्ति का वचन है, इसका निर्देश काव्य का अग नहीं है, बल्कि नाटकीय ढग पर उन वचनों का उल्लेख किया गया है। इसमे सदेह नहीं कि इसी कारण रामचद्रिका को पढ़ने मे नाटक का सा आनद आने लगता है। लेकिन जो प्रबध-काव्य को नाटक का आन द उठाने के लिये पढ़ता है उसे दूसरे घोंसले में जाना चाहिए। इस सबंध में आजकल की कहानियों और उपन्यासों में प्रयुक्त कथोपकथन की बिना नाम दिये हुए लिखने की प्रणाली का उदाहरण केशवदास की ओर से पेश नहीं किया जा सकता है। नाटकीय ढग में संवादों को देने की इस स्वच्छौंदता को अपनाने का साहस आज के
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