पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/३

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भूमिका यह रामच द्रिका के सक्षिप्त रूप का दूसरा सस्करण है। द्धेय गुरुवर स्वर्गीय लाला भगवानदीनजी ने इसका पहेला. स्करण प्रस्तुत किया था। इसके सकलन में उन्होंने इन रातों का विशेष ध्यान रखा था-"(१) कोई उत्तमांश छूटने 1 पावे, (२) अनावश्यक, कम आवश्यक और कठिन अंश छोड दिये जावे, (३) यथासंभव सरस और सरल यश अवश्य लिये जावे, (४) जिनके पढने-पढ़ाने में अथवा केसी को समझाने में संकोच हो ऐसे अश सरल और सरस होने पर भी छोड दिये जावे और (५) यथासंभव, वर्णित विषयों का क्रम भी भग न होने पावे।" (प्रथम संस्करण की भूमिका से) ____ इन बातों का ध्यान रखते हुए स्वर्गीय लालाजी ने मूल प्रथ में से बहुत थोडा अश छोडा था। परतु इधर विद्यार्थियों के अध्ययन-अध्यापन की आवश्यकताओं ने यह अनुभव कराया है कि पुस्तक का और अधिक सक्षेप होना आवश्यक है। अतएव इस सस्करण मे पचास पृष्ठ के लगभग का आकार कम कर दिया गया है। इस पुनः-संक्षेप-कार्य मे न० २ और ३ पर अधिक जोर दिया गया है। परंतु इतना Ltd विचार अवश्य रखा है कि कठिनता ही के लिये कोई अश