पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १४ ) [निशिपालिका छद] कामवनाराम सब बास तरु देखियो । | नैन सुखदैन) मन मैनमय लेखियो। । ईश जहँ कामतनु कै अतनु डारियो । छोडि वह, यज्ञथल केशव निहारियो ॥५६॥ [दो०] रामचद्र लक्ष्मण सहित, तन मन अति सुख पाइ। देख्यो विश्वामित्र को, परम तपोवन जाइ ॥५७॥ ( तपोवन-वर्णना ) 1 [ षट्पद । तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर।। मजुल बजुल तिलक लकुच कुल नारिकेर वर । एला ललित लवग सग पुगीफैले सोहै। सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल अलि मोहै। शुभ राजहस कलहस कुल नाचत मत्त मयूरगन ।। अति प्रफुलित फलित सदा रहै केशवदास विचित्र बन ॥५८ [सुप्रिया छद] कहुँ द्विजगण मिलि सुख श्रुति पढ़हीं। 1 कहुँ हरि हरि हर हर रट रटहीं। कहुँ मृगपति मृगशिशु पय पियहीं। कहुँ मुनिगण चितवत हरि हियहीं.॥५९॥