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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९६

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। हा अखड। ( ४६ ) [ पद्धटिका छद] राम-सुनि सकल लोक गुरु जामदग्नि । तप विशिख असेसन की जो अग्नि । सब विशिख छॉडि सहिहौं अखड । हर-धनुख कर्यो जिन खड खड ॥२१२॥ [सवैया] परशुराम-बान हमारेन के तनत्रान विचारि विचारि विरंचि करे हैं। गोकुल ब्राह्मन नारि नपुसक जे जग दीन सुभाव भरे हैं॥ राम कहा करिहौ तिनको तुम बालक, देव अदेव धरे हैं। गाधि के नौंद तिहारे गुरू जिनते ऋखि वेख किये उबरे हैं ॥२१३।। षट्पद] राम-भगन भयो हर-धनुख साल तुमको अब सालै । वृथा होइ विधि-सृष्टि ईस आसन ते चालै ॥ सकल लोक सहरहु सेस सिर ते धर डारै । सप्त सिंधु मिलि जाहिं होहिं सबही तम भार ॥ अति अमल ज्योति नारायणी कहि केसव बुडि जाहि बरु । भृगुनद सँभारु कुठार मै कियो सरासन युक्त शरु ॥२१४॥ [स्वागता छद] राम राम जब कोप कर्यो जू । लोक लोक भय भूरि भर्यो जू ॥