पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१०

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अवस्था उस समय छः मास की थी। प्रसिद्ध छत्रसाल के पुत्र हृदयंशाह ने, जो पन्ना के राजा धे, रीवों पर चढ़ाई कर अधिकार कर लिया और अवधूतसिंह को माता अपने पुत्र सहित अवध में प्रतापगढ चली गई। दिल्ली के बादशाह की सहायता से हृदयशाह को निकालकर अवधूतसिंह ने फिर अपने राज्य पर अधिकार कर लिया। इनकी मृत्यु पर इनके पुत्र अजीतसिंह राजा हुए और सं० १८६६ वि० में महाराज जयसिंह देव राजा हुए। इन्हीं के समय पहले पहल भारत सरकार और रीवा राज्य के बीच संधि स्थापित हुई । सं० १८६६ वि० में पिंडारियों ने इनके राज्य से होकर मिरजापुर लूट लिया जिसमें इनका भी कुंछ लगाव था। इसी घटना पर उसी वर्ष वृटिश सरकार ने इन्ह संधि स्थापित करने पर बाध्य किया। महाराज जयसिंह स्वयं अच्छे विद्वान् तथा कवि थे और इन्होंने लगभग वीस पुस्तकं लिखी हैं।

महाराज जयसिंह ने जीवितावस्था में ही अपने पुत्र विश्वनाथसिंह को राजगद्दी दे दी। ये भी अच्छे विद्वान हुए और कई ग्रंथों पर इनकी टीकाएं मिलती हैं। इनकी सहधर्मिगी श्रीमती परिहारिन मा साहिंया नागौद की राजपुत्री थीं जिनसे सं० १८८० वि० में महाराज रघुराजसिंह का जन्म हुआ था।बाल्यावस्था में इन्हें अच्छी शिक्षा मिली थी और संस्कृत में भी इन्होंने अच्छी दक्षता प्राप्त कर ली थी। इनकी काव्यशक्ति देवी थी। पहले पहल इन्होंने विनयमाल नामक पुस्तक लिखी ।स॰