रामस्वयंवर। (दोहा) हरिलला साधन विमल, लखि उपजत अनुराग । यह साधन सब भांति ते, लखत सुमति वड़ भाग ॥ ६॥ अवनि उतारन भार को, हरि लीन्ह्यो अवतार । पै न बनत बरनत विपिन, पद गमनत सुकुमार ॥७॥ (छंद चौवोला) . . चहुरि स्वामिनीहरन महादुख बरनि जाई कहु कैसे। पुनि वियोग जगजननिनाथ को लागत कथन अनैसे ।। तांते सम हरि गुरु निदेस दिय वालकांड भरि पाठी। करहु तजहु दुख कथा जथा लै घृत वुध त्यागत माठा ॥८॥ अश्लोकहु अश्लोकारध नहि जव लौं'पाठ कराहीं ॥" तव लौ अंबु-पानहूं त्यागत का पुनि भोजन काहीं ॥
- ताते रामस्वयंवर गाथा रचन आस उर आई।
--रघुपति-बालचरित्र-विवाह उछाह. देहूँ मैं गाई-11-६॥ : - बालकांड को बिसद चरित संछेप कथा षट काँडा। . बरनहुँ रीति बालमीकि जेहि सुनि पुनीत ब्रह्मांडा ॥ उक्ति जुक्ति तुलसीकृत केरी और कहाँ मैं पाऊँ ! .:, . बालमीकि बरु व्यास गोसाईं सूरहि को सिर नाऊँ॥१०॥ (सोरठा) जय जयं दसरथलाल, अवधपाल कलिकालहरें । अनुपम दीनदयाल, मति करहु निहाल मोहि ॥१६॥