पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२१९

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२०३
रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। २०३ (चौपाई) . भृगुपति वचन सुनत रघुनायकालागी दया तज्यो निज सायक हनी स्वर्ग-गति भृगुपति केरी। दोन जानि किय कृपा घनेरी। (छंद दंडफ) सर्वपर सर्वहत सर्वगत सर्वरत सर्वमत पूज्य भानंदकारी। अखिलनाय अमल अखिलदायक सुजस अखिलभायक वपुष मोह हारी ॥ जयति रघुराज दिनराजकुलकमलरवि विप्रकृत काज धनु वान धारी ॥ भूप दशरथ सुअन सफल भुवनाभरन करन असरन सरन दुधनदारी ॥२६२॥ (दोहा) अस कहि पदपंकज परसि,परम प्रमोदित राम । गया महेंद्राचल चटक, सुमिरि रोम अभिराम ॥ २३ ॥ बधू-प्रवेश (चौपाई) चली सैन्य कछु बरनि नजाई । मनहुँ उठी पूरब मेघवाई ।। यहि विधि तहँ वरात लसानी। आय अवधपुर कह नजिकानी॥ योजन भरि मह परिगो डेरा । जानि कालिद दिन परछन केरा। तुरत सुमंत दूत पठवायो। खबार नगर रनिवास जनायो। प्रातकर्म करि भोजन कीन्हें । अवध प्रवेस करन मन दोन्हें ।। सजो सैन्य सुंदर चतुरंगा। चले वराती भूपति संगा।