रामस्वयंबर ।
- लसत अयोध्या के सब जोधा निगमागम कृत बोधा ।
क्रोधा शत्रु-समूहन सेाधा नहिं गति कहुं अवरोधा। अवधराज की विमल विराजति विसद सुवाजिनसाला। सकल जाति के बंधे तुरंगम रूप अनूप विसाला ॥२२॥ (सोरठा) अनुपम अवध भुवाल, जाकी गजसाला विमल। सिंधुर लसत विसाल, विविध जाति अरु देस के ॥२३॥ (दोहा) मंत्री दसरथ भूप के, उत्तम आठ प्रधान । चतुर देवगुरु सरिस सव, करहिं सत्य अनुमान ॥ २४ ॥ - सकल मंत्र जिनको विदित, जानत लखि आकार। . नित नरपति हित में निरत, मितभाषी अविकार ॥ २५ ॥ श्रीवसिष्ठ ब्रह्मर्षि वर, वामदेव ऋपिराज। । उमैं पुरोहित नृपति के, कारक सव सुम काज ॥ २६ ॥ ऐसे सचिवन ते सहित, दसरथ भूभरतार । शासंत' सकल बसुंधरा, घराधर्म आधार ॥ २७ ॥ चतुर चार गुप्तहु प्रकट, कै सव देस प्रवार । पालत प्रजा भुवालमनि, करत धर्म संचार ॥२८॥ कहूँ अधर्म को लेस नहि, धर्म कर्म रत लोग । सुखी सनेह रुखो प्रजा, दुखो मुखो नहिं जेोग ॥२६॥ जासु प्रताप प्रताप ते, भई अकंटक भूमि।