पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३३

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंबर।। २१७ पितुपन पालनहेत कृपानिधि देवन काज बिचारे । पादुका बिदा करि भरतहि आप विपिन पगुधारे॥ सानुज भरत नंदिग्रामहि चलि बसे वेप मुनिधारी । , राम अत्रि अनसुइया आश्रम गये प्रमोद विसारी ॥३६८॥ अनसुइया दिय सियहि सिखापन पट भूपन पहिराई। मुनि सो बिदा माँगि रघुनायक चढ़े सैल सुख पाई ॥ मिल्यो भयंकर तब मारग महं दानव श्राय बिराधा ! ताहि मारि महि गाड़ि दीन अति मेटो सुर मुनिवाधा ॥३६॥ कहुं दस मास कहूं त्रय मासहु सात आठ कहुं मासो। चित्रकूट ते मुनि आश्रम लगि कीन्हें राम निवाला ॥ एक समय पुनि बहुरि सुतीछन आश्रम में प्रभु आये। विदामागि मुनि ते अगस्त्य के श्राश्रम गे सुख छाय॥३७०॥ मारण महं अगस्त्य भ्राता से करि तिहि नाथ सुखारी। कुमन कुटी जाय रघुनंदन प्रनए पानि पसारी, कुमजोनि शारंग दियो धनु तथा अखंड निपंगा। पंचवटी महँ वसन हेतु मुनि दियो निदेस अभंगा ॥३७॥ • · खर-दूषण वध पंचवटी महं पर्नकुटी रचि रसि सिय जुत दोउ भाई । वलित विनोद बिहार करत बहु दिय दै वर्ष बिताई ॥ रावन की भगिनी सूपनखा एक समय तह आई। । कोटि मदन मद मारक मूरति लखि सो रही लुमाई ॥३७२॥