पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२४१

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। २२५ ', पाइ अनुसासन दसानन को छपावार वीरनं को ल्याये जे हैं जीरन बनाकै ॥ लूप में लपेटि ताहि दोन्ह्यो है बढ़ाइ कपि यसन न वाचे कई तब ते रिसाइके तेलहिं सिचाइ पुनि पावक लगाइ दीन्हें, नगर फिराय सवै षाजन बजाइकै । मागि भवलोकि लागि कोपरस पागि योर, परिघ उठाइ लीन्हीं बंधन छुड़ाइक ॥ ११० कारि होरि खलन के मुंडन को फेरि फेरि, दौर दौरि खोरि खोरि खलल मचाया है। करि करि कोप कृदि कृदि केसरीकिशोर कंचन कंगूरन में कालहीं सो भाया है । घरन धरन धुलिघुसि धूमि धूमि घोर शोर करि चहूं ओर पावक लगाया है। काई नहि यल बच्या लेक हलकंप मच्या कहा था विरंचि रच्यो यही रख छाया ॥४॥ बार धार होलिकै सी लंकै खूब जारि जारि, चाय सों प्रचारिकै के महाघोर किलकारि । दीरघ दिवालन बिदारि खंमऊ उखारि,दोऊ कर धारिधारि अरिन को मारिमारि। जस विस्तारिकै खरारि को हिये सम्हारि, पूछ को वुझायो वारिनिधि वारि झारिझारि । बांटिक विधारि सिरनाइसीय सोकटारि, केसरीकुमार पार चल्योराम.जै उचारि॥४१२|| • चढिकै गिरंदै पाँव मसकि फपिंद कूद्यो, शैल गोपताल वायुलोल आयो पार है । नाद को सुनाइ अंगदादिन को मोद छाइ, वैठो माइ सीसनाह कीसन मैंझार है। जानकी निहारि पायों को लंकजारि आयोमारि आयो रावन के वीर बेसुमार है।