पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२४८

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रामस्वयंवर।

मारीच खरदूपन त्रिशिर तरु', ताल सिंधु महान॥
वासव-कुमार विराध वाली त्यों कबंध अमान।
जानत सकल ये रामबान प्रभाव त नहिं जान।।४४७॥
तव कह्यो दशकंधर विहँसिं भल कही महिमा राम।
जल माहँ मरि पापान तरु उत्तरे किया का काम।।
तव उठ्यो अंगद तमकि वोल्यो वैन परम कराल।
रावण वचावन ताहिं पठयो मोहिं दीनदयाल॥४४८॥
उपकार महं अपकार मानत वीस लोचन अंधु।
रिस लगति अस मुख टोरि गवनहुं जहाँ करुनासिंधु॥
तव कोपि दशकंधर कह्यो अव सुनत ही भट काह।
पदको पुहुमि मर्कट चटक अव होतिअति उर दाह।।४४६॥
सासन सुनत दशवदन को धाये, निशाचर वीर।
गहि लियो अंगद को कुपित डोल्यो न कपि रनधीर।।
जब गति गये कसि भुजन महँ तव तुरत तमकि तरक्कि।
अंगद गयो मंदिर उपर भेट गिरें सकल खरक्कि॥४५०॥
टूटे भुजा फूटे वदन मरिगे निशाचार चारि।
अंगद उड़्यो तहँते कहत जय लपन राम खरारि॥
आयो अकास अकास वानर वली चालिकुमार।
प्रभुचरन परसि प्रनाम करि अल कियो वचन उचार॥४५१॥
अब उचित कोसलनाथ अस दीजै तुरंत रजाय।
लंका महल्ला में हुलप्ति : हल्ला करें कपि धाय।
सुनि प्रसु हरपि निवसे निला तिहि सावधान सचैन।