"रामस्वयंवरः। • (चौपाई). दूलर सीस भयो दशशीशा । लखि आश्चर्य गुन्यो जगदीशा।। सोउ रावण सिर काटि गिरायो। तीसर सीस तुरतद्वै आयो॥ यहि विधि सत सिर काथ्यो रामा । भेनवनवतिर तिहि संग्रामा तब मातलि वोल्या कर जोरी । सुनहु नाथ विनती इक मोरी॥ हिरनकशिपु कनकाछ सँहारे । अमित वार भुवि भार उतारे ।। यह रावण है केतिक वाता। हनहु ब्रह्मसर कर निपाता ।। मातलि कहे सुरति प्रभु कीन्हा । घोर ब्रह्मसर अस्त्रहि लीन्हा । सो सर संधान्यो रघुराई । वेद मंत्र पढ़ि आनंद छाई ॥ रावन हृदय ताकि रघुनायक । तज्यो अमोघ ब्रह्मसर सायक। रावण हृदय लग्यो सर घोरा। पत्र सरिस ताको उर फोरा ॥ ... . . . (दोहा) . .: : :: • रावन, प्रानसमेत सर फोरि सात-पांताल। . - . रुधिरमयो रघुनाथ सर प्रविश्या तून विसाल ॥५२८|| गिसो भूमि में धनुप तिहि मृतक भयो दशभाल । .. स्पंदन ते धरनी गिलो कॅपी धरनि तिहि काल ॥५२६॥ .. . (छंद चौवोला) .. : . . : भागे निसांचर करत ओरत शोर लंका ओर को। रगदे यलीमुख ऋच्छ वृश्छन्न हनत करि करि जोर को॥ - बरजे कपिन रघुवंसमति अर्व जातुधान बचाइयो। कयपराध नहिं अंब कोपमन नहि लाइयो।।५३०॥ यते मातली मिलि कहे रघुपति वैन को।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७२
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