२७२ रामस्वयंवर। रघुपति राजतिलक अनुरागी । अगनित मनिन लुटावन लागी॥ , (सोरठा) . मुनि वशिष्ठ तिहि काल, कह्यो वचन हँसि राम सों। सिंहासन छविजाल, बैठहु सीता सहित अब ॥ ६५८॥ (दोहा) आयो समय सुहावनो, देव दुंदुभी दीन । गुरु वशिष्ठ सव मुनिन को, वोले परम प्रवीन ॥६५६ ॥ (चौपाई ) सुनहु विनय कश्यप जावाली । कात्यायन गौतम तपसाली ।। वामदेव आदिक ऋपिराई । राजतिलक वेला अव आई ।। करहु रामअभिषेक सुहावन । लेहु बनाइ जन्म निज पावन ॥ अस कहि लियो कमंडलु हाथा। लाग्यो पढ़न वेद मुद गाथा ! लग्यो करन रघुपति अभिषेका । वेदमंत्र पढ़ि सहित विवेका ॥ किय अभिषेकप्रथम गुरुझानी। पुनिसव मुनि विधिवतमतिखानी आई पुनि द्विजसुता कुमारी । किय अभिपेक सुगंधित वारी।। मंत्री वर्ग सकल पुनि आये । करि अभिषेक महा सुख पाये ।। (छंद चौवोला) यहि विधि राजतिलक रघुवर को भयो अवधपुर माहीं। तिहि दिनते सतजुग अस लाग्यो प्रानी सुखित सदाहीं॥ नित नित मंगल मोद महोत्सव देस देस मह भयऊ। - तीनिहुँ ताप विगत पुरजन सव स्पप्त हुँ सोक न छ्यऊ ॥६६॥ " पृथक पृथक वानरन सयूथन प्रभु कीन्हों सत्कारा।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२९२
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