रामस्वयंवर। सर्ग पंचशत कांड पट, हरन हार सब शोक ॥१३॥ उत्तर कांड रच्यो बहुरि, कांड भविष्य समेत । आठ कांड यहि विधि भयो, रामायण सुखसेत ॥३॥ रावण कुंभकर्ण की जन्मकथा । (छंद चौबोला) जन्म्यो जवहिं जलंधर रावण महावली सुरजेता। तब भूभारहरन हित प्रगटे केशव कृपानिकेता॥ दियो देवऋपि साप रुद्रगन ते दोउ भूतल माहीं । रावण कुंभकर्ण प्रगटे जिन सरिस कोड वल नाहीं ॥१४॥ भानुप्रताप भयो कोउ भूपति धर्मनिरत दोउ भाई । विप्र सापवस दसकंधर अरु कुंभकर्ण भे आई ॥ रामजन्म में हेतु अनेकन कह लो कहीं बखानी । पै पुराण श्रुति संमत सब विधि जौन कहे मुनिशानी ॥१४॥ हरि पार्षद जयविजय अनूपम सनकादिक को रोके । ते प्रचंड दिय साप दुहुन कह होय अमर्पक ओके ॥ ., असुर भाव दोउत्तीनि जन्म लगिजन्म जगत महँ पैहो। हरि-करलहि वध विगत साप है पुनि विकुंठकह ऐहै।॥१४२॥ प्रथम जन्म ते हिरनकसिपु अरु हिरन्यात भे जाई । । राक्षस रावण कुंभकर्ण पुनि तेइ भये महि आई ।। 'पुनि सिसुपाल दंतवक्रहु भे तजे न आसुर भाऊ । " महाबली त्रिभुवन के जेता डरैं जिन्हें सुरराऊ ॥१४३।।
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