ने मांडला के हैहयवंशीय राजा की पुत्री से विवाह किया
जहाँ से इन्हें बांधवगढ़ दहेज में मिला। कर्णदेव ने इसे
अपनी राजधानी बनाया है और आधुनिक रीवाँ के बहुत कुछ
भाग पर अधिकार करके उसका नाम बघेलखंड रखा। सन्
१३५५ ई० में गुजरात के बंघेला राजा कर्ण को सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलुग खां ने परास्त कर उस राज्य
पर अधिकार कर लिया जिससे वघेला वंश के बहुत से लोग
इस राज्य में चले आए। इसके अनन्तर चौदहवीं और पंदरहवीं
शताब्दियों में इस वंशवाले अपना राज्य दृढ़ करने में लगे
रहे और इस योग्य नहीं थे कि दिल्ली के सम्राटों के राज्य-विस्तार में बाधक होते। मुत्तखवुत्तवारीख़ में लिखा है कि जब
सं०१५३७ वि० में जौनपुर के शरकी वंश का सुलतान हुसेन शाह
काल्पी के पास बहलोल लोदी से परास्त होकर भागा, तब भट्टी
के राजा ने धन, सामान ओर हाथी आदि की सहायता कर
उसे जौनपुर पहुंचा दिया था।
सं० १५५२ ई० में राजा भयंददेव ने जोनपुर के सूवेदार मुवारक ख़ाँ लोहानी को कैद कर लिया जिससे सुलतान
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- स० १२६० वि. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिजर पर अधिकार
कर लिया जिससे चंदेल राजपूत वहाँ से पूर्व की ओर हटे और बघेलों से मारफा आदि दुर्ग विजय कर वहीं बस गए। वघेला सरदर बांधवगढ़ और सोहागपुर चले आये, जहाँ हैहयवंशियों का राज्य था। उसी समय से अंतिम वंशवालो के लेख नहीं मिलते।
में दोनों राज्य सटे हुए थे और इनमे आपस में मित्रता थी।