रामखयंबर. विप्र काज लगि बिन बिलंब नृप दीजै तदपि पठाई ॥ .. अस कहि पचन धर्म जुत मुनिवर भान भये तेहिकाला। --- मुनिनायक के बचन सुनत नरनायक भयो विहाला ॥३०२॥ दोहा] ". " उठ्यो दंड है महँ नपति, लीन्ह्यो श्वास अघाय। मंद मंद बोलत भयो, कौशिक पद सिर नाय ॥३०॥ .[कवित्त ] बूढ़े भये ज्ञानी भये तपसी विख्यात भये, राजऋषि हते प्रमृषि तुम हैगये। विमल बिरागी भये जगत के त्यागी भये, विश्व बड़भागी भये विषय उर ना यये । भनै रघुराज भगवान भक्तिवान भये; महा धर्मवान सत्यवान जग उवै गये। छमा में मछेह छमामान, भये काहै मुनि, मेरे-छोटे छोहरा पै दयावान ना भये ।। ३०४॥ . ., [दोहा : .. कही दीनता अदपि यहु, संक सकोच सुजान । नरनायक-के बचन सुनि, मुनिनायक अनखान ३०५५ विनय रीति विसराय सब, लखि वशिष्ठ की ओर। बोले विश्वामित्र तब, कीन्हें अमरष घोर ॥३०॥ [कवित्त ]
- प्रथम प्रतिक्षा करी शासन करूँगो सब, सुत के सनेह बस
पस विसराइये। यह विपरीत रघुवंसिन उचित नाहि, ओजुलीं