पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१००

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( ६० ) १७०~-कई एक मनुष्यावाचक स्त्रीलिंग शब्दो के पुल्लिग शब्द प्रचा में नहीं हैं जैसे, सती, सहेली, सुहागिन, अहिवाती, धाय, अप्सरा । | १७१०-कुछ शब्द रूप में परस्पर जोड़े जान पड़ते हैं। पर यथाय । में उनके अर्थ अलग-अलग हैं; जैसे, | सॉड़ ( बैल ), सॉड़िनी (ऊँटनी ); सॉड़िया ( ऊँट का बच्चा) डाकू ( चोर), डाकिया ( चिट्ठीवाला ), डाकिनी (चुडैल ), भेड़ { भेड़े की मादा )भेड़िया ( एक हिंसक जानवर ) ।। १७२---कई-क पुल्लिग शब्दो के स्त्रीलिंग शब्द दूसरे ही होते हैं। राजा-रानी भाई-बहिन वर-वधू पिता-माता पुरुष-स्त्री बेटा-बहू ( पतोहू ) ससुर ---सास मर्द ( आदमी ) औरत विधुर—विधवा साला--साली पुत्र--कृया साहिब-मेम। १७३-कभी-कभी स्त्रीलिंग से किसी जाति की स्त्री ही का बोध नहीं होता, किंतु किसी व्यक्ति के स्त्री का भी बोध होता है; इसीलिये कई-एक•पुल्लिग संज्ञाओं के भिन्न-भिन्न अर्थ-वाले दो स्त्रीलिग होते हैं। जैसे, भाई-बहिन, भावज पुत्र-कन्या, वधू सोला-साली, सरहज बेटा-बेटी, बहू ( अ ) चेली शिव्या, गुरुआइन, अध्यापिका, मास्टरिन, डाक्टरिन आदि शव्द दो-दो अर्थों में आते हैं-( १ ) स्वतंत्र व्यवसाय करनेवाला अथवा ६ २ } पति की पदवी धारण करनेवाली । | १७४--एकलिग मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञाओं में पुरुष और स्त्री जाति का भेद बताने के लिए क्रमशः नर और मादा जोड़ते हैं, जैसे नर--चील-मादीचील, नर-भेड़िया--मादा-भेड़िया, नर-विच्छ- मादा विच्छ ।