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अन्तरा
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शब्द गुरु नानक (श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
- सकल जगत अपने सुख लाग्यो,
- दुखः में संग न होई ।।
- दारा मीत, पूत सम्बन्धी,
- सगरे धन सों लागे।
- जब ही निरधन देख्यो नर को,
- संग छांडि सब भागे ।।
- कहा कहूँ या मन बौरे कों,
- इन सों नेह लगया।
- दीनानाथ सकल भय भंजन,
- जस ता को बिसराया ।
- स्वान पूंछ ज्यों भयो न सूधो ,
- बहुत जतन मैं कीन्हौ ।
- 'नानक' लाज बिदुर की राखौ
- नाम तिहारा लीन्हौं ।।
- सकल जगत अपने सुख लाग्यो,