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पाठ १७

भजन

भजन नं. १

पितु मातु सहायक स्वामी सखा, तुम ही इक नाथ हमारे हो।
जिनके कछु और अधार नहीं, तिनके तुम ही रखवारे हो ।
प्रतिपाल करो सगरे जग को, अतिशय करुणा उर धारे हो ।
भूलि हैं हम ही तुम को, तुम तो हमरो सुधि नांहि विसारे हो ।
उपकारन को कछु अन्त नहीं, छिन ही छिन जो विस्तारे हो।
महाराज महा महिमा तुमरी, समझें बिरले बुद्धवारे हो।
शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे, मन मन्दिर के उजियारे हो।
इस जीवन के तुम जीवन हो, इन प्राणन के तुम प्यारे हो ।
तुम सों प्रभु पायें "प्रताप हरी" केहि के अब और सहारे हो ।