पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०५

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  • सङ्गीत विशारट *

शाङ्ग देव , - भारतीय मगीत के प्राचीन एवं प्रसिद्व अन्य “सगीत रत्नाकर" के रचयिता श्री शाङ्ग देव १३ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध ( १२१०-१२४७ ) में देवगिरी (दक्षिण) के बादशाह के दर में रहते थे। आपके वाना काश्मीरी ब्राह्मण श्रे, जो बाद मे श्राफर देवगिरी मे वस गये। इनके पिता श्री मोढला, यादव राजा भिल्लमा ( ११८७-११६१) ई० और सिंहना (१२१०-१२१७ ) ई० के दर्वार में उच्च कर्मचारी थे। शादेव के प्रति राजा का भी प्रेम था । इसमे प्रतीत होता है कि आपकी शिक्षा-दीना राजाश्रय मे ही हुई। आपने 'मङ्गीत रत्नाकर' नामक ग्रन्थ म नाद, श्रुति, स्वर, ग्राम, मूछना जाति इत्यादि का भली-भाति विवेचन दिया है। अनेक पूर्व लिखित प्रन्या की सामग्री लेकर तत्कालीन उत्तरी दक्षिणी सङ्गीत का समन्वय किया है। आपने कुल १२ विकृत स्वर माने हैं तथा सात शुद्ध और ग्यारह विकृत इस प्रकार १८ जातिया मानी है। इन जातियों का विस्तृत वर्णन करने के बाद ग्राम रागों को जातियों से उत्पन्न बताया है और प्राम रागों से ही अन्य राग विकसित बताये हैं। शाङ्ग देव के स्वर और राग आधुनिक स्वर ओर रागों से मेल नहीं खाते, कारण यह है कि उन्होंने जो श्रुतिअन्तर कायम किये थे, वे आज के श्रुति अन्तर से भिन्न हैं। यद्यपि 'सङ्गीत रत्नाकर' में वर्णित राग आज उपयोग में नहीं आ सकते, तथापि पुस्तक के अन्य भार्गों में जो विस्तृत विवरण इस विद्वान ने दिया है उसमे आधुनिक समय में बडी सहायता मिलती है । कुछ विद्वानों ने शादेव का शुद्ध थाट 'मुग्नारी' जिसे आधुनिक कर्नाटक सगीत में 'कनकागी' भी कहते हैं, स्वीकार किया है। अमीर खुसरो अमीर खुमरो का पिता अमीर मोहम्मद मैफुदोन बलबन का निवासी था। हिन्दुस्तान में आने के पश्चात् इसके यहा अमीर खुसरो का जन्म हुआ । एक लेखक के मतानुसार श्रापका जन्म ६५३ हिजरी (१२३४ ई०) है तथा अन्य लेसक १०५३ ई० मानते हैं । खुसरो का जन्म स्थान एटा जिले मे 'पटियाली' नामक स्थान का माना जाता है । खुसरो अत्यन्त चतुर और बुद्विमान था । उस काल के मान मे योग्य शिक्षा पाने के पश्चात अमीर खुसरो गुलाम घराने के दिल्ली पति गयासुद्दीन बलवन के प्राश्रय मे रहा । किन्तु कुछ दिनों बाद गुलाम पराने का अन्त होगया और सल्तनत खिलजी वंश के कब्जे में आगई, अत खुसरो भी पिनगी वश का नोकर हो गया । अलाउद्दीन खिलजी ने १२०१ ई० में जव देवगिरी के राना पर चढाइ की उस समय अमीर गुमरो भी उसके साथ था। इस लड़ाई में देवगिरी के राजा की पराजय हुई। देवगिरी में उस समय गोपाल नायक नामक सङ्गीत का एक उत्कृष्ट विद्वान रहता था। खुसरो ने एक छल पूर्ण प्रस्ताव रयकर राज दर में उससे मङ्गीत प्रतियोगिता मागी और उमे आपने चातुर्य वल से पराजित कर दिया । किन्तु वह गोपाल नायक की कला का हृदय से आदर करता था, इसलिये दिल्ली लौटते ममय गोपाल नायक को भी उसके साथ ग्राना पडा।