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- सगीत विशारद *
++flu “नाट्यशास्त्र" नामक प्रसिद्व अन्य का निर्माण किया एवं अन्य ग्रन्थ भी इस काल में लिसे गये। भरत के नाट्यशास्त्र मे प्रेरणा पाकर ही इस काल में नाट्य और नृत्य का निशेप प्रचार हुया । एव इसी काल मे ३ ग्राम, २१ मूर्छना, ७ स्वर और २२ श्रुतियों की प्रणाली का वर्णन भी सगीत प्रन्यों में किया गया। । महाकवि है इसी काल में महाकवि कालिदास (४०० ई०) द्वारा सगीत ई और कविता का प्रचार चारों ओर हो चुका था। राज दरवारों में कालिदास Mms गायक-वादक सम्मानित होने लगे थे। कालिदास ने अपनी रचनाओं मे सङ्गीत का पुट देफर आश्चर्यजनक प्रगति की। उस समय करिता और सङ्गीत के समिश्रण मे सगीत में एक नई चेतना जागृत करने का श्रेय महाकवि कालिदास को ही है। है हमारे प्रसिद्ध प्रथ रामायण और महाभारत भी इसी काल मे लिसे रामायण गये । अर्थात महाभारत का काल ५०० ईसा पूर्व से २०० ईसी तक
- ओर रामायण काल ४०० ईसा पूर्व से २०० ईमवी तक का माना महाभारत
ME जाता है। रामायण मे एक वर्णन के अनुसार-जन लक्ष्मणजी सुग्रीव के अन्तर महल मे प्रवेश करते हैं, तो वहा वीणा वाढन के शुद्ध गायन सुनते हैं। रावण को भी सङ्गीतशास्त्र का प्रकाड विद्वान बताया गया है। इसी प्रकार महाभारत में भी सात स्वरों का तथा गाधार ग्राम का वर्णन मिलता है। इन दोनों ही ग्रन्थों में सङ्गीत तथा वाद्य यन्त्रों का विशेष उल्लेस मिलता है। भेरी, दुन्दुमी, मृदङ्ग, घट, डिमडिम, मुद्दुक, आदम्बर, वीणा आदि वाद्यों का उल्लेस हम रामायण में देखते ही हैं । इससे विदित होता है कि महाभारत और रामायण काल में भी मड्गीतकला प्रचार में रही। भरत का नाट्यशास्त्र ५ वीं शताब्दी (४००-५०० ई०) की भरत रचना मानी जाती है। यद्यपि यह एक नाटकीय प्रथ है, किन्तु इसके का ८- और ३० वे अध्यायों में मङ्गीत सम्बन्धी शास्त्र दिया गया है, नाटया जिसमें गायन वादन, नृत्य, श्रुति, सर, ग्राम, मृर्द्धना और जातियों का उल्लेख है। नाटय भी नृत्य श्रेणी में आ जाने के कारण यह समूचा प्रथ ही सगीतम्ला के अन्तर्गत आ जाता है। आज भी नाट्यशास्त्र प्राचीन काल के सगीत का एक आधारभूत ग्रय माना जाता है। इमी समय के आस-पास भरत के पुत्र दत्तिल द्वारा लिसित "दत्तिलम्" प्रथ का उल्लेख भी मिलता है। यह प्रथ भी पाचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का माना जाता है। इममे प्रतिपादित मत लगभग भरत मे मिलते-जुलते हैं। दत्तिलम में मूर्च्छना की परिभापा नहीं दी गई, जब कि भरत के नाट्यशास्त्र में दी गई है। । मतग का छटी शताब्दी के समय मे मतग मुनि प्रणीत वृहदेशीय ग्रन्थ मिलता है, जिसमें ग्राम और मृर्छना का विस्तृत रूप मे उल्लेस किया गया है। मर्व प्रथम “राग" शब्द का उल्लेस भी इसी ग्रथ में पाया Hit जाता है। इससे पूर्व के प्रथों में राग शब्द नहीं मिलता। मतग के समय मे ७ प्रकार की ग्राम जातिया प्रचलित थीं, जिनमे एक “वट्ट" राग की जाति भी है। ग्रन्थ