पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

  • सङ्गीत विशारद *

२७ 4 मुहम्मद शाह रँगीले—(अठारहवीं शताब्दी ] grammmmmmmmmmming सदारंग १८ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध (१७१६-१७४० ई०) में मुगल वंश है के अन्तिम बादशाह मुहम्मद शाह रंगीले हुए। सङ्गीत के यह अत्यन्त .प्रेमी थे, बहुत से गीतों में इनका नाम प्रायः आजकल भी पाया जाता है । रँगीले के दरबार में दो अत्यन्त प्रसिद्ध गायक सदारंग और अदारंग थे, जिन्होंने हजारों ख्यालों की रचना करके अनेक शिष्य तैयार किये । वास्तव में ख्याल गायकी के प्रचार का श्रेय सदारंग और अदारंग को ही है, इन्हीं के ख्याल आज सर्वत्र प्रचार में आरहे हैं ।* इसी समय में शोरी मियां ने "टप्पा” ईजाद करके प्रचलित किया । अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सङ्गीत साधना साधारण रूप से चलती रही, इधर मुसलिम शासकों की शक्ति क्षीण होने लगी और अंग्रेजों का पंजा धीरे-धीरे भारत पर जमने लगा। इस उथल-पुथल में सङ्गीतकला बड़े-बड़े राजाश्रयों से पृथक होकर स्वतन्त्र रूप से एवं कुछ छोटी-छोटी रियासतों में पलने लगी। wammmmmmmmmmmmmmmmming ___ इसी समय में श्रीनिवास पंडित ने "राग तत्ववोध" नामक श्रीनिवास ई प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। जिसमें इन्होंने भी पारिजात कार की भांति कृत १२ स्वरस्थान बनाकर अपना शुद्ध थाट आधुनिक काफी थाट के है राग तत्ववोध है है समान निश्चित किया । मध्यकालीन ग्रन्थकारों में श्री निवास पंडित ही अन्तिम ग्रन्थकार है। इसीकाल में ( १७६३-१७८६ ई०) तंजौर के मराठा महाराजा सङ्गीत सारामृत । तुलाजीराव भोंसले द्वारा सङ्गीत सारामृत नामक पुस्तक लिखी गई। ___और सङ्गीत सारामृत में दाक्षिणी सङ्गीत पद्धति का वर्णन किया है रागलक्षणम् और ७२ थाट स्वीकार करते हुए २१ मेल (थाटों ) द्वारा ११० जन्य रागों का वर्णन किया है। D+++++++H राग लक्षणम् ग्रन्थ में रागोत्पादक ७२ थाट मानकर उनके द्वारा अनेक रागों का विवरण स्वरों सहित दिया है। यह ग्रन्थ भी दक्षिण की प्रचलित सङ्गीत पद्धति का आधार ग्रन्थ माना गया है । इस पर मूल लेखक का नाम तो नहीं दिया गया किन्तु इस ग्रन्थ की प्रस्तावना से पता चलता है कि तंजोर के ही एक गृहस्थ के यहाँ से यह प्राप्त हुआ था। . (४) अाधुनिक काल (अँगरेजी राज्य ) अंग्रेज, भारतीय सङ्गीत को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे, साथ ही साथ अँग्रेजी सभ्यता का प्रभाव रियासतों पर भी पड़ने लगा। जिसके फल स्वरूप राजा लोग भी सङ्गीत के प्रति उदासीनता का भाव प्रकट करने लगे और इस प्रकार रियासतों से सङ्गीतज्ञों को

  • कुछ लेखको के मतानुसार कलावंती ख्याल गायकी का प्रचार जौनपुर के सुलतान हुसेन शर्की

द्वारा माना जाता है। -