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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/४

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प्राक्कथन

सङ्गीत का विद्यार्थी वर्ग बहुत दिनों से एक ऐसी पुस्तक की मांग कर रहा था, जिसमें इन्टर तथा विशारद की परीक्षाओं में आने वाली थ्योरी (शास्त्रीय विवेचन) हो। वास्तव में उनकी यह मांग उचित भी थी; क्योंकि सरल हिन्दी भाषा में अभी तक कोई ऐसी पुस्तक प्राप्य नहीं थी, जिसमें ऐसे परीक्षार्थियों को मनवांछित सामग्री प्राप्त हो सके। विद्यार्थियों की यह कठिनाई प्रकाशक की दृष्टि में भी थी और वह चाहता था कि इसे तुरन्त दूर कर दिया जाय; किन्तु किसी भी निर्माण कार्य की योजना को क्रियात्मक रूप देने में समय तो लगता ही है। फलस्वरूप 'सङ्गीत विशारद' के प्रकाशन में भी वर्षो का समय लग गया।

भातखण्डे सङ्गीत महाविद्यालव, गांधर्व महाविद्यालय मंडल, माधव सङ्गीत महाविद्यालय, प्रयाग सङ्गीत समिति आदि शिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रमों के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की गई है, अतः विभिन्न केन्द्रों में परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को इससे यथेष्ट सहायता प्राप्त होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

इस पुस्तक में प्रयुक्त स्वर और ताल चिन्ह यद्यपि भातखंडे पद्धति के अनुसार ही हैं तथापि विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिये विष्णु दिगम्बर पद्धति के स्वर-ताल चिन्हों का, स्पष्टीकरण भी यथा स्थान कर दिया गया है। राग और तालों का विवरण देते समय इस बात की पूर्ण चेष्टा की गई है कि शिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रमानुसार (प्रथम वर्ष से पंचम वर्ष तक) सभी राग और तालों का इस पुस्तक में समावेश हो जाय। इस प्रकार यह पुस्तक विशेषतः 'सङ्गीत विशारद' के विद्यार्थियों के लिये मां सरस्वती का वरदान स्वरूप बन गई है। इस पुस्तक के अध्ययन के बाद परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने की पूर्ण आशा है ही, साथ ही भारतीय सङ्गीत के शास्त्रीय ज्ञान का एक विशाल कोष भी विद्यार्थियों को प्राप्त हो सकता है, जिसकी उन्हें अपने सांगीतिक जीवन में पग-पग पर आवश्यकता पड़ेगी।

पुस्तक के प्रकाशन के उपरान्त मेरा परिश्रम पूर्ण तो हो गया, किन्तु इसकी सफलता अभी शेष है। यदि विद्यार्थी वर्ग को इस पुस्तक के अध्ययन से यथोचित लाभ होता है और वे इसे हृदय से अपनाते हैं तो वह सफलता भी दूर नहीं।

अन्त में उन लेखक महानुभावों के प्रति भारी कृतज्ञता प्रकट करते हुए मैं उन्हें अपना हार्दिक धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। जिन विद्वानों के विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों का अवलोकन और मन्थन करने के पश्चात इस पुस्तक की रचना की गई है उन ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के नाम इस प्रकार है:––

१––सङ्गीत रत्नाकर (शार्ङ्गदेव)
२––सङ्गीत दर्पण (दामोदर)