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पांचवा अङ्क

३०१

देवी है। मैं जीती रही तो इस गांवमें तेरा मन्दिर बनवाकर छोड़ूंगी।

एक वृद्धा—साच्छात् देवी है। इसके कारन हमारे भाग जाग गये, नहीं तो बेगार भरने, और रो-रोकर दिन काटनेके सिवा और क्या था।

सलोनी—(राजेश्वरीसे) क्यों बेटी, तुने वह विद्या कहां पढ़ी थी। धन्न है तेरे माई-बापको जिनके कोखसे तूने जन्म लिया। मैं तुझे नित्य कोसती थी, कुलकलङ्किनी कहती थी। क्या जानती थी कि तु वहां सबके भाग संवार रही है।

राजेश्वरी—काकी मैंने तो कुछ नहीं किया। जो कुछ हुआ ईश्वरकी दयासे हुआ। ठाकुर सबलसिंह देवता हैं। मैं तो उनसे अपने अपमान का बदला लेने गई थी। मनमें ठान लिया था कि उनके कुलका सर्वनाश करके छोड़ूंगी। अगर तुम्हारे भतीजेने उनकी जान न बचा ली होती तो आज कोई कुलमें पानी देने वाला भी न रहता।

सलोनी—ईश्वरकी लीला अपार है।

राजेश्वरी—ज्ञानीदेवीने अपने प्राण देकर हम सभोंको उबार लिया। इस शोकने ठाकुर साहबको विरक्त कर दिया। कोई दूसरा समझता बलासे मर गई, दूसरा ब्याह कर लेंगे, संसारमें कौन लड़कियों की कमी है। लेकिन उनके मनमें दया और धर्मकी