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उठाते मानों कहींके राजा हैं! अच्छा, पेटपर हाथ धरकर खोट गया। पेट अफर रहा है, बैठा नहीं जाता। चुटकी बजाकर दिखाता है कि भेंट लाओ। देखो एक किसान कमरसे रुपया निकालता है। मालूम होता है, बीमार रहा है, बदनपर मिरजई भी नहीं है। चाहे तो छातीके हाड़ गिन लो। वाह मुंशीजी। रुपया फेंक दिया, मुंह फेर लिया, अब बात न करेंगे। जैसे बंद- रिया रूठ जाती है और बन्दरकी ओर पीठ फेरकर बैठ जाती है, विचारा किसान कैसा हाथ जोड़कर मना रहा है, पेट दिखा- कर कहता है, भोजनका ठिकाना नहीं, लेकिन लाला साहब कब सुनते हैं।
हलधर--बड़ा गलाकाटू जात है।
फत्तू--जानता है कि चाहे बना दूं, चाहे बिगाड़ दूं। यह सब हमारी ही दशा तो दिखाई जा रही है।
(तीसरा चित्र--थानेदार साहब गांवमें एक खाटपर बैठे हैं। चोरीके मालकी सफ़तीश कर रहे हैं। कई कान्स्टेबल वर्दी पहने हुए खड़े हैं। घरों में खानातलाशी हो रही है। घरकी सब चीजें देखी जा रही हैं। जो चीज जिसको पसन्द आती है उठा लेता है। और तोंके बदनपर के गहने भी उतरवा लिये जाते हैं।)
फत्तू--इन जालिमोंसे खुदा बचाये।
एक किसान--आये हैं अपने पेट भरने। बहाना कर दिया
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