पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मध्ययुग (उत्तरार्द्ध ) ४१३ साखी अठ पर व सठ थे, बूला धर यान । क्या जाने कौने घ, आा।इ जिले भवान ३१। आठ पहर चौसठ री, भरो पियाला प्रेस । बू ला कई बिचारि है, है इमरो नेस ।२५। बिना नर बिनु मालिहीबिंदु सोंचे रंग होय। बिनु नैनन तहें दरसनो, श्रेस अचरज इक सय ।३है। ऐसन अद्भुत घूद है जुग जुग अचल अपर। आबे जय न बीन, सदा है यकतार १४। अरे रंग में रंगिया, दन्हो प्रान कोल । उनमुनि सुधा भस्म धरि, बोलत अमृत बोल ५५। अछे =अक्षय, अविनाशी। अंकोलअंकोर, सुस्वादु भेंट । उनसुनि मुद्रा=परमात्मा के प्रति सदा उन्मुख रहने को स्थिति। गुरु गोबिंद सिंह गुरू गोविंद सिंह का पूर्व नाम गोबिंद राय था और ये गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे । इनका जन्म स० १७२३ को पोथ सृदि ७ को पने में हुआ था। ये अपनी छोटी अवस्था से हो खेल-कूद, , युद्धकला आदि के अभ्यासों में बड़ा भाग लेते रहे। । पटने से अपने पिता के निकट आनंदपुर आ जःने पर इन्होंने वाणबिया में विशेष कुशलता प्राप्त कर लो थो तथा अपने सहयोगियों का संगठन भी करने लग गए थे । गुरु तेगबहादुर की हत्या हो जाने पर इन्होंने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो निकटवर्ती राजमों के साथ मैत्रोसंबंध करना आरंभ किया अऔर थोड़े ही दिनों में इनका एक दल-सा बन गया जो दिल्ली के बाद शाहों को सशंकित करने लगा । सिखधर्म के अनुयायियों में युद्ध का भाव जागृप्त करने के लिए इन्होंने उनका एक नवोन ‘खल सा पंथ '