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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१६०

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सचित्र महाभारत [पहला खरड उन पर कपड़ा लपेट दिया। तब नकुल उस शमी वृक्ष पर चढ़ गये और एक अच्छी माटी मजबूत और पत्तों से खूब ढकी हुई डाल चुनी। फिर कपड़े लिपटे हुए हथियार डोरी से उसमें बाँध दिये। यह करके आस पास के किसानों से उन्होंने कह दिया कि इस पेड़ में मुर्दा बँधा है। इससे उसके पास जाने का किसी को भी साहस न हुआ। इसके बाद द्रौपदी महित पाँचों भाइयों ने नगर में प्रवेश किया। वहाँ हर एक ने अपने पसन्द किये हुए गुप्त वेश के उपयोगी कपड़े और सामान इकट्ठ किये और नौकरी मांगने के लिए राज-दरबार में अलग अलग गये। ११-अज्ञात वास सबसे पहलं ब्राह्मण के वंश में युधिष्ठिर विराटभवन में पहुँचे । चौपड़ में लिपटी हुई गोटें और सुनहले पाँसे उनकं बग़ल में दबे थे । राग्य में छिपी हुई आग की तरह तेजस्वी युधिष्ठिर की ओर विराट की निगाह शीघ्र ही गई। व विस्मिन होकर सभासदों से पूछने लगे :- हे मभासद ! राजां की तरह शोभायमान ये ब्राह्मण कौन हैं ? इनके साथ नौकर, चाकर और सवारी आदि भी नहीं है । ये राजों की तरह बखटके हमारे पास चले आ रहे हैं। विगटराज ये बातें कर ही रहे थे कि युधिष्ठिर उनके पास पहुँच कर बोल :- महाराज ! हम ब्राह्मण हैं । दुर्भाग्य से हमारा सब कुछ जाता रहा है। हम महा-निर्धन हो गये हैं । इससे नौकरी के लिए आपके पास आये हैं । यदि आज्ञा हो तो यहीं रहें और आपकी जा इच्छा हो उसके अनुसार काम करें। विराटराज ने अत्यन्त प्रसन्न होकर कहा :- हं तात ! तुमको नमस्कार है । तुम किस राज्य से आय हो, तुम्हारा नाम और गात्र क्या है, और कौन सा हुनर तुम जानते हो। युधिष्ठिर ने कहा :-महाराज ! हम व्याघ्रपदी गोत्र के ब्राह्मण हैं। हमारा नाम कङ्क है। हम पहल गजा युधिष्ठिर के प्रिय मित्र थे। जुआ खेलने में हम बड़े निपुण हैं। विराट ने कहा :-जुआ ग्वेलन में निपुण मनुष्य का हम बहुन चाहते हैं । इसलिए आज से तुम हमारे भी मित्र हुए। तुम नीच काम करने के पात्र नहीं। इसलिए तुम हमारे साथ हमारी ही तरह राज्य करो। युधिष्ठिर ने कहा :-हमार्ग आपस केवल यही एक प्रार्थना है कि हमें किसी नीच और कपटी श्रादमी के साथ न खेलना पड़े। विराट ने यह बात मान ली। उन्होंने कहा :- तुम्हारे साथ जो काई अन्याय करेगा उसे हम ज़रूर दंड देंगे । पुरवासियों को सुना कर हम कहते हैं कि आज से इस राज्य में हमारी ही तरह तुम्हारी भी प्रभुता होगी। इस तरह आदर के साथ नौकरी पाकर युधिष्ठिर बड़े सुख से समय बिताने लगे। इसके बाद महाबलवान् भीमसेन काले कपड़े पहन और काली छरी तथा भोजन बनाने के उपयोगी सामान लेकर आये। उन्हें आते देख कर मत्स्यराज कहने लगे :- यह ऊँचे कन्धांवाला और रूपवान् युवा पुरुष कौन है ? इसे तो हमने पहले कभी नहीं देखा । काई जल्दी से जाकर पूछ श्रावे कि यह क्या चाहता है।