पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२०४

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१७८ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड हे मधुसूदन ! धृतराष्ट्र के पुत्रों ने हम लोगों पर कहाँ तक अत्याचार किये हैं, इसकी तुम्हें बार बार याद दिलाने की जरूरत नहीं। धर्मराज ने केवल पाँच गाँव लेकर सन्धि कर लेने की इच्छा श्राप ही के सामने प्रकट की। पर वह भी कौरवों ने नामंज़र की । खैर, तुम कौरवों की सभा में जाते हो तो जाव । परन्तु, सारा राज्य लिये बिना और किसी शर्त पर सन्धि न करना । कौरवों की सभा में जब हमारा इतना अपमान किया गया तब भी हमारे पति कोमलता धारण किये बैठे रहे । सारा अप- मान-सारा अनादर-उन्होंने चुपचाप सह लिया। अब वे अपनी प्रतिज्ञा का पालन कर चुके हैं। इस समय उन्हें किसी तरह का बन्धन नहीं रहा। अब काम करने का समय आया है। तिस पर भी भीम और अर्जुन फिर मृदुता दिखा रहे हैं ! उनकी बातें सुन सुन कर मेरा कलेजा फटा जाता है । इस समय तुम्हारे सिवा और कोई मेरी रक्षा करनेवाला नहीं। मैं तुम्हारी ही शरण हूँ। तुम्ही धृतराष्ट्र के इन पापी पुत्रों को उचित दण्ड दो। यदि मेरे पति युद्ध न करना चाहें तो न करें; कोई हानि नहीं। मेरे वृद्ध पिता और महाबलवान् भाई युद्ध करेंगे। अभिमन्यु को आगे करके मेरे तेजस्वी पाँच पुत्र युद्ध करने में किसी तरह का आगा पीछा करनेवाले नहीं ! इतना कह कर द्रौपदी विह्वल हो उठी; वह जोर जोर रोने लगी। दुख का वेग कुछ कम होने पर उसने अपनी छुटी हुई काली काली अलकों को हाथ में लिया और कहने लगी :- हे केशव ! जब कौरवों की सभा में शान्ति की बात उठे तब पापण्डी दुःशासन के हाथ से अपवित्र हुए मेरे इन बालों की बात न भूल जाना ! कृष्ण द्रौपदी को धीरज देकर बोले :- हे कल्याणी ! तुम इस समय जिस तरह रो रही हो उसी तरह कौरवों की स्त्रियों को तुम थोड़े ही दिनों में रोती देखोगी। हे द्रौपदी ! और अधिक मत रोश्रो; आँसू पोंछो; तुम्हारे पति बहुत जल्द शत्रुओं का संहार करके अपना राज्य प्राप्त करेंगे। इसी तरह की बात होते होते वह रात बीत गई। दूसरे दिन सबेरे ज्यों ही सूर्य भगवान् ने अपनी किरणों का जाल फैला कर दसों दिशाओं को प्रकाशित किया त्यों ही यदुवंश-शिरोमणि कृष्ण हस्तिनापुर जाने की तैयारी करने लगे। ब्राह्मणों के मुँह से मंगल-पाठ सुन कर उन्होंने स्नान किया। फिर कपड़े-लत्ते पहन कर सूर्य और अग्नि की पूजा की । इसके बाद सांत्यकि को बुला कर कहा :- हे सात्यकि ! हमारे रथ में शङ्ख, चक्र, गदा और दूसरे प्रकार के सब हथियार सजा कर रक्खो। दुर्योधन, शकुनि और कर्ण बड़े दुरात्मा हैं। इसलिए उनके पाप-कम्मों से अपनी रक्षा के लिए तैयार होकर जाना चाहिए। कृष्ण की आज्ञा पाकर सात्यकि ने रथ में सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्र अपने अपने स्थान पर सजा कर रख दिये । रथ को तैयार देख कृष्ण सबसे बिदा हुए और सात्यकि के साथ जाकर रथ में बैठ गये। उनके साथ हथियारों से सजे हुए दस महारथी, एक हजार सवार, और एक हजार पैदल फौज रवाना हुई। इसके सिवा, खाने पीने का सामान लेकर बहुत से नौकर-चाकर भी उनके पीछे पीछे चले। श्रीकृष्ण का सारथि दारुक रथ हाँकने में बहुत ही प्रवीण था। घोड़ों की रास थामते ही वे हवा हो गये। इस प्रकार कृष्ण ने हस्तिनापुर को प्रस्थान किया। ___ इधर दूत के मुँह से कृष्ण के आने की खबर सुन कर धृतराष्ट्र के शरीर में रोमाञ्च हो पाया। भीष्म, द्रोण और विदुर आदि के सामने वे दुर्योधन से कहने लगे :- हे कुरुनन्दन ! बड़े आश्चर्य की बात हमने सुनी है। सुनते हैं कि महात्मा वासुदेव खुद ही पाण्डवों के दूत बन कर यहाँ आ रहे हैं। इस समय घर घर यही चर्चा हो रही है। कृष्ण हमारे