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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२३५

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दूसरा खण्ड] युद्ध का प्रारम्भ २०७ दरबाजों की रखवाली करने लगे। बीच में धर्मराज का सफेद छत्र शोभायमान हुआ। युद्ध प्रारम्भ करने की आज्ञा देने के लिए वहीं से वे सूर्य उदय होने की राह चुपचाप देखने लगे। इधर दुर्योधन पाण्डवों का वह विकट व्यूह देख कर द्रोणाचार्य आदि मुख्य मुख्य सेनाध्यक्षों से कहने लगे :- हे वीर-वर ! श्राप सभी लोग शास्त्रों के जाननेवाले और नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या में निपुण हैं। आप लोगों में से प्रत्येक जन अकेले ही पाण्डवों को हरा सकता है, सब मिल कर उन्हें हराने की तो बात ही नहीं । हमारे पास सेना भी मतलब से अधिक है। इसलिए बहुत सी सेना और बहुत से महारथी योद्धा केवल भीष्म की रखवाली के लिए नियत कर देना चाहिए। यह बात सबको पसन्द आई । तब भीष्म ने उसी के अनुसार अपनी सेना की व्यूह-रचना की। __ इसके बाद बड़े जोर से शंख बजा कर दोनों पक्षों के सेनाध्यक्षों ने अपनी अपनी सेना के उत्साह को बढ़ाया । कोलाहल का पार न रहा । घोर युद्ध प्रारम्भ हो गया। ____धीरे धीरे भीष्म ने पाण्डवों की सेना को फिर पहिले की तरह पीड़ित करना और काटना आरम्भ किया। फिर भगदड़ पड़ने लगी। तब अर्जुन ने कृष्ण से कहा :-- हे कृष्ण ! बहुत जल्द भीष्म पितामह के सामने हमारा रथ ले चलो। महावीर भीष्म दुर्योधन का जी जान से भला करने पर उतारू हैं । उनको न रोकने से हमारी सारी सेना कट जायगी। इससे प्राणों की परवा न करके आज उनके साथ युद्ध करना होगा। ___कृष्ण ने, अर्जुन के कहने के अनुसार, भीष्म के सामने रथ ले जाना प्रारम्भ किया। अर्जुन कौरवों की सेना का नाश करते करते भीष्म के रथ के सामने जा पहुँचे। दो प्रचण्ड तेजों के परस्पर भिड़ जाने से जैसे महा अद्भुत व्यापार होता है वैसे ही इन दो प्रबल पराक्रमी वीरों की मुठभेड़ से हुआ। अर्जुन की सहायता के लिए पाण्डवों के सेनाध्यक्ष और भीष्म की सहायता के लिए कौरवों के सेनाध्यक्ष वहाँ आ पहुँचे । भीषण युद्व होने लगा। चारों तरफ सेना में वाह वाह और बड़ाई के तार बँध गये। लोग कहने लगे :- ओहो ! कैसा अद्भुत युद्ध हो रहा है। ऐसा युद्ध न तो कभी पहले ही हुआ है और न कभी आर ही होने की आशा है। इधर महावीर अर्जुन भीष्म को नहीं जीत सकते, उधर वीर-शिरोमणि भीष्म के द्वारा अर्जुन के जीते जाने के भी कोई लक्षण नहीं देख पड़ते। जितने अच्छे अच्छे धनुर्धारी थे सब भीष्म-अर्जुन का यह आश्चर्यकारक युद्ध देखने के लिए एक जगह इकट्ठे हो गये। भीमसेन को यह अच्छा मौका मिला। उन्होंने कौरवों की सेना पर बड़े वेग से धावा किया और चारों ओर हाहाकार मचा दिया। उनकी तेज तलवार की चोट खा खा कर हाथियों के झुण्ड के झुण्ड घोर चीत्कार करते हुए जमीन पर लोटने लगे। घोड़े और घुड़-सवार भी महाबली भीमसेन के पैने बाणों से छेदे जाकर सौ सौ पचास पचास एक ही साथ गिरने लगे। भीम ने बड़ी ही विचित्र रण- चातुरी दिखाई । उछल उछल कर उन्होंने रथ पर पर सवार वीरों को जमीन पर गिरा दिया; किसी को अपने पैरों से कुचल डाला; किसी के केश पकड़ कर जमीन पर पटक दिया। भीमसेन की उस समय की वह भयङ्कर मूर्ति देख कर कौरवों के पक्षवाले वीर बे-तरह डर कर भगे। भाग कर उन्होंने भीष्म की शरण ली। यह दशा देख कर कलिङ्ग देश के क्षत्रियों ने भीमसेन को रोकने की चेष्टा की-वे उनका मुकाबला करने दौड़े। उनको दौड़ते देख भीमसेन क्रोध से जल उठे। तत्काल ही उन्होंने अपना धनुर्बाण उठाया और पहले कलिङ्ग-देश के राजा और उनकी रखवाली करनेवाले वीरों को, और फिर उनकी बहुत