पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२४

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सचित्र महाभारत पहला खण्ड ] इसके अनन्तर एक दिन राजा शान्तनु यमुना के किनारे घूम रहे थे कि अचानक एक अद्भुत सुगन्ध आई । ऐसी सुगन्ध राजा ने इसके पहले कभी नहीं देखी थी। वे सोचने लगे कि यह मनोहर सुगन्ध कहाँ से आ रही है। खोज करने पर उन्हें मालूम हुआ कि वह देवरूप-धारिणी एक धीवर की कन्या के बदन की सुगन्ध है। इस पर राजा को बड़ा कौतूहल हुआ। आश्चर्य में आकर उन्होंने उस मल्लाह की कन्या से पूछा : हे सुन्दरी ! तुम कौन हो ? किसलिए तुम यहाँ आई हो ? यहाँ पर तुम क्या करती हो ? कन्या ने उत्तर दिया : महाराज ! मैं एक धीवर की कन्या हूँ। मेरा नाम सत्यवती है । मैं पिता की आज्ञा से, इस घाट पर, नाव चलाया करती हूँ। ____उस कन्या के अद्भुत रूप और आश्चर्यकारक सुवास पर राजा शान्तनु मोहित हो गये। उसके साथ विवाह करने की उन्हें प्रबल इच्छा हुई। इससे वे उसके पिता के पास गये और अपने मन की बात उससे कही। धीवर बोला--हे नरनाथ ! हे महाराज ! कन्या हुई है तो विवाह उसका करना ही पड़ेगा। आप राजा होकर भी उसके पाने की इच्छा रखते हैं, यह मेरे लिए बड़े ही आनन्द की बात है। इससे अधिक सन्तोष और सुख की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है ? परन्तु मेरे मन में एक अभिलाष है; उसे पूरा करने के लिए पहले आपको 'हाँ' करना होगा । इस कन्या का विवाह आपके साथ होने पर इसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होगा उसी को राज्य का अधिकारी आपको बनाना होगा। आपको यह प्रण करना होगा कि आपके पीछे आपका राज्य सत्यवती ही के पुत्र को मिलेगा, और किसी को नहीं। सत्यवती पर राजा अत्यन्त आसक्त थे, इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु वे अपने पुत्र देवव्रत का इतना प्यार करते थे कि धीवर की इस बात को अङ्गीकार करने में वे समर्थ न हुए। बहुत दुःखित होकर वे अपनी राजधानी हस्तिनापुर को लौट आये । परन्तु सत्यवती उन्हें नहीं भूली। उसकी रूपराशि की चिन्ता के कारण उनके मन को अत्यन्त विकलता हुई। वे बहुत उदास रहने लगे । बड़े कष्ट से उनका समय कटने लगा। पिता की यह दशा देख कर महात्मा देवव्रत को बड़ी चिन्ता हुई । अन्त में उनसे न रहा गया; पिता से उन्होंने इस दुःख का कारण पूछा। राजा शान्तनु ने सत्यवती के सम्बन्ध की कोई बात पुत्र से न बतला कर इस प्रकार कहा : वत्स ! तुम्ही हमारे अकेले पुत्र हो । तुम सदा ही वीरता के कामों में लगे रहते हो। तुम्हारा कोई अनिष्ट होने-तुम पर कोई आपदा आने से हमारे वंश की क्या दशा होगी, यही सोच सोच कर हम सदैव दुखी रहते हैं। हमारी चिन्ता का यही कारण है। देवव्रत को सन्देह हुआ कि पिता ने अपने दुःख का कारण साफ़ साफ़ मुझसे नहीं बतलाया। कुछ देर तक इस बात को सोच कर वे पिता के उस मन्त्री के पास गये जो राजा के साथ सत्यवती के पिता के पास गया था। उस मन्त्री से देवव्रत ने पिता की चिन्ता का कारण पूछा। उसने देवव्रत से सत्यवती-सम्बन्धी सारी बातें साफ़ साफ़ कह दी । उन्हें सुन कर देवव्रत ने पिता की इच्छा पूर्ण करने का दृढ़ संकल्प किया और उसी क्षण वे धीवर के पास पहुंचे। धीवर ने राजकुमार देवव्रत से आने का कारण पूछा। उन्होंने सब बातें उसे कह सुनाई। धीवर ने कुमार को बड़े आदर से आसन पर बिठलाया और उनके साथ जितने राजपुरुष आये थे सबके सामने इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया : हे राजकुलदीपक ! आप शस्त्र धारण करनेवालों में सबसे श्रेष्ठ और राजा शान्तनु के इकलौते पुत्र हैं । सब बातें आप ही के हाथ में हैं । इससे मैं आपसे सारी कथा कहता हूँ, सुनिए ।