२५८ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड पर भी उन्होंने हमारी अधिकांश सेना नष्ट कर दी है। अब ऐसा उपाय कीजिए जिसमें बची हुई सेना न मारी जाय। महावीर शल्य ने युधिष्ठिर से जो प्रतिज्ञा की थी उसका उन्हें स्मरण हो पाया । दुर्योधन के बहुत कहने सुनने से उन्होंने कर्ण का सारथि होना तो स्वीकार कर लिया; पर उसके साथ ही उन्होंने एक शते भी की। वे बोले :- हे कुरुराज ! तुम जो हमें कृष्ण के बराबर समझते हो इससे हमें बड़ी खशी हुई है। तुम्हारी जो यही इच्छा है तो सूत-पुत्र कर्ण का सारथि होना हमें स्वीकार है । परन्तु एक बात है। सारथि का काम करते समय जो हमारे जी में आवेगा हम कर्ण को कहेंगे। ऐसा करने से वे हमें न रोक सकेंगे। यह शर्त तुम्हें और कर्ण दोनों को माननी होगी। कर्ण और दुर्योधन ने शल्य की यह शते मंजूर कर ली । तब शल्य ने-जय हो!-कह कर कर्ण का रथ तैयार किया और तुरन्त ही उसे उनके पास ले आये। महावीर कर्ण ने उस रथ की विधिपूर्वक पूजा और प्रदक्षिणा की। फिर सूर्य की उपासना करके पास ही खड़े हुए मद्रराज को रथ पर सवार होने के लिए आज्ञा दी। तब महानेजस्वी शल्य उस रथ पर इस तरह जा बैठे जैसे सिंह किसी ऊँचे पर्वत पर चढ़ जाता है। वीरवर कर्ण भी उस रथ पर सवार होकर मेघों के बीच सूर्य की तरह शोभायमान हुए। उस समय युद्ध के लिए तैयार हुए उस शूर-वीर से दुर्योधन ने कहा :- हे कर्ण ! महारथी भीष्म और द्रोण से युद्ध में जो बात नहीं हो सकी वही बात--वही महा- कठिन काम-आज तुम, सारे धनुर्धारियों के सामने, कर दिखाओ । अङ्गगज ! तुम्हारी जीत हो ! तुम्हारा मङ्गल हो ! तुम्हारा प्रस्थान शुभदायक हो ! इसके अनन्तर, कौरवों की सेना में मेघों की गर्जना के समान हजार तुरही और दस हजार भेरी का महागम्भीर शब्द होने लगा। इससे पाण्डवों की निद्रा भङ्ग हुई । उन्होंने जाना कि कर्ण युद्ध के लिए रवाना हुए । कर्ण ने शल्य से कहा :- हे मद्रराज ! रथ चलाइए; अब देर न कीजिए; हम बहुत जल्द पाण्डवों को परास्त करेंगे । अर्जुन को हम अभी दिखा देंगे कि हमारी भुजाओं में कितना बल है। दुर्योधन को जिताने के लिए आज हम ऐसे तेज़ बाणों की वर्षा करेंगे कि पाण्डव भी याद करेंगे। कर्ण की बात सुनकर शल्य कहने लगे :- हे सारथि के बेटे ! प्रत्यक्ष इन्द्र को भी जिनके डर से कँपकँपी छूटती है उन्हीं महाधनुर्धारी और सब शस्त्रास्त्रों के ज्ञाता पाण्डवों की तुम किस बिरते पर अवज्ञा करते हो ? युद्ध के मैदान में जब तुम वज्र के कड़ाके के समान अर्जुन के गाण्डीव की महाभीषण टङ्कार सुनोगे, जब तुम महाबली भीमसेन के हाथ से कौरवों को कट कट कर जमीन पर गिरते देखोगे, और जब नकुल-सहदेव को साथ लिये धर्मपुत्र युधिष्ठिर के अनगिनत बाण आकाश-मण्डल में घन-घटा की तरह छा जायँग; तब तुम्हारे मुँह से इस तरह की बातें न निकलेंगी। मद्रराज की बात को सुनी अनसुनी करके कर्ण ने फिर उन्हें रथ हाँकने की आज्ञा दी। शल्य ने कर्ण की आज्ञा पालन की। अन्धकार का नाश करके सूर्य जैसे उदित होता है उसी तरह शल्य के द्वारा चलाया गया कर्ण का वह सफेद घोड़ावाला रथ शत्रुओं का संहार करते हुए दौड़ने लगा। तब महावीर कर्ण परम प्रसन्न होकर पाण्डव-वीरों से कहने लगे :- _____ हे वीर-गण ! तुम लोगों में से जो कोई हमें अर्जुन को दिखा देगा वह जो कुछ मांगेगा हम वही देंगे।
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