दूसरा खड] युद्ध के बाद की बातें २८९ इसके बाद शोक से व्याकुल सञ्जय धृतराष्ट्र के घर गये। दुर्योधन के मरने और दोनों तरफ की सब सेना नष्ट हो जाने का हाल उन्होंने ज्यों ही वृद्ध राजा से कहा त्यों ही वे बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़े। उस समय घर में जितनी स्त्रियाँ थीं वे सब और महात्मा विदुर भी भूमि पर लोट कर विलाप करने लगे। कुछ देर तक राजघराने के सभी लोग काठ की तरह जमीन पर पड़े रहे। होश होने पर अन्धे राजा धृतराष्ट्र को मालूम हुआ कि हमारे पास इस समय कोई नहीं है। इससे बहुत कातर होकर वे कहने लगे :- ____ हे विदुर ! हम पुत्रहीन और अनाथ हो गये। इस समय तुम्हारे सिवा हमारा कोई नहीं है। यह कह कर वे फिर बेहोश हो गये और जमीन पर गिर पड़े। तब भ्रातृवत्सल विदुर बड़ी व्याकुलता से उठ बैठे और जल छिड़क कर तथा पंखा झल कर महादुखी बूढ़े राजा धृतराष्ट्र की सेवा करने लगे। उधर स्त्रियों के फिर एक-दम से रो उठने से घर गूंज उठा। अन्त में जब धृतराष्ट्र को होश हुआ तब भी वे मोह के कारण गूंगों की तरह चुपचाप जमीन पर पड़े रहे । तब महात्मा विदुर कहने लगे :- ____महाराज ! आप धीरज धर कर उठिए । इस संसार में कोई चीज़ सदा नहीं बनी रहती। उन्नति के बाद पतन, मिलने के बाद बिछुड़ना, जीने के बाद मरना हुआ ही करता है। जो लोग युद्ध नहीं करते वे भी मरते हैं। बहुत लोग युद्ध करके भी बच जाते हैं । काल आने पर कोई नहीं बच सकता। फिर अपने धर्म के अनुसार क्षत्रिय लोग क्यों न युद्ध करें ? जब सभी को मरना है तब मरे हुओं के लिए शोक करने से क्या लाभ ? आप जानते ही हैं कि सब लोगों ने सम्मुख युद्ध में प्राण देकर स्वर्गलोक प्राप्त किया है। इससे इस समय आपको दुःख करने का कोई विशेष कारण भी नहीं। विदुर के इस तरह धीरज देने और समझाने पर भी धृतराष्ट्र का शोक कुछ भी कम न हुआ। इससे महात्मा सञ्जय ने उन्हें काम में लगा कर उनका मन बहलाने के इरादे से कहा :- हे राजन् ! श्राप ही की तलवाररूपी बुद्धि ने आपको काटा है; इसलिए शोक करना व्यर्थ है। अनेक देशों के राजा कुरुक्षेत्र आये थे। आपके पुत्रों के साथ वे भी पितृलोक पधारे हैं। इसलिए अब वृथा शोक न करके उनका मृतक-कर्म कीजिए। इस कठोर बात से धृतराष्ट्र को अकचकाया हुआ देख विदुर ने फिर कहा :- हे कुरुश्रेष्ठ ! युद्ध में मरे हुए जिन लोगों के लिए आप शोक करते हैं उन वीरों ने मुक्ति- लाभ किया है । इससे उनके लिए सोच करना उचित नहीं। अब आपको चाहिए कि उन लोगों की पारलौकिक क्रिया सम्पादन करें। इस पर धृतराष्ट्र कुछ शान्त हुए। उन्होंने विदुर से कहा :- तुम सवारी लाने की आज्ञा दो और गान्धारी, कुन्ती तथा अन्य स्त्रियों को ले आओ। जब चलने की तैयारी हो गई तब विदुर ने वृद्ध धृतराष्ट्र और रोती हुई रानियों को रथों पर सवार कराया। सब लोग नगर से निकल कर लड़ाई के मैदान की तरफ़ चले। जिन रानियों का मुँह पहले देवताओं ने भी न देखा था उन अनाथों को अब सामान्य मनुष्य भी देखने लगे। जो सखियों के सामने भी लज्जा से सिर झुकाये रहती थीं वे शोक से विह्वल होकर बड़ों के सामने भी एक ही वस्त्र पहने निकलीं । यह आश्चर्यजनक दृश्य देख कर नगर-निवासी बड़े दुखी हुए और जोर जोर से रोने लगे। इस तरह कुटुम्बियों के साथ धृतराष्ट्र के एक कोस जाने पर कृपाचार्य, कृतवर्मा और फा०३७
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