३३१ दूसरा खण्ड ] महाप्रस्थान महाराज ! भाई सहदेव ता सदा हम लोगों के श्राज्ञाकारी रह कर बराबर सेवा किया करते थे। तब इस समय उन्हें क्यों इस तरह पतित होना पड़ा ? उत्तर में धर्मराज ने कहा :-- भाई ! सहदेव अपने को सबसे अधिक बुद्धिमान् समझते थे। यही उनके पतित होने का कारण है। यह कह कर और सहदेव को छोड़ कर युधिष्ठिर अटल चित्त से बचे हुए भाइयों के साथ चलने लगे। वह कुत्ता भी उनके साथ साथ चला । इसके बाद थोड़ी ही देर में द्रौपदी और सहदेव के गिरने से दुःखित और योगभ्रष्ट होकर नकुल भी जमीन पर गिरे। तब भीमसेन ने फिर धर्मराज से पूछा :- महाराज ! नकुल ने कभी कोई धृष्टता का व्यवहार नहीं किया। उन्होंने सदा ही हम लोगों की आज्ञा बड़ी सावधानी से पालन की है। तब इस समय वे क्यों गिरे ? इमके उत्तर में युधिष्ठिर बोले :- भाई ! नकुल अपने को बड़ा रूपवान् समझते थे। यह अहङ्कार ही उनके पतन का कारण है । __यह कह कर धर्मराज लापरवाही से आगे चलने लगे। भीम और अर्जुन भी दुःखपूर्ण हृदय से साथ साथ चले। पर महावीर अर्जुन इन सब शोककारक बातों को अधिक देर तक न सह सके । वे भी शीघ्र ही भूमि पर गिर पड़े । तब भीमसेन ने फिर पहले ही की तरह पूछा :- महाराज ! सर्वगुणसम्पन्न अर्जुन ने तो हँसी में भी कभी झूठ नहीं बोला। वे इस समय क्यों गिरे ? तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया :-- भाई ! अर्जुन को अपनी शूरता का जितना अभिमान था उसके अनुसार काम उनसे नहीं हुए। इसी से उनका इस समय पतन हुआ। तुम उनकी तरफ मत देखा; चुपचाप हमारे साथ चलो। यह कह कर धर्मराज दृढ़ता के साथ आगे बढ़ने लगे। वह कुत्ता भी उनके साथ ही साथ रहा। प्यारे भाइयों के वियोग से अधीर होकर महाबली भीमसेन भी शीघ्र ही जमीन पर गिरे । गिग्ने गिरते उन्होंने बड़े जोर से जेठे भाई को पुकार कर कहा :--- हे पार्य्य ! हम आपके प्यारे भाई हैं। हमें किस पाप से इस समय जमीन पर गिरना पड़ा ? धर्मराज ने उत्तर दिया :- भाई ! तुम दूसरे की परवा न करके अपने ही बाहुबल के मद में मस्त रहते थे। तुम्हारे गिरने का यही कारण है। यह कह कर युधिष्ठिर पीछे देखे बिना चुपचाप आगे बढ़े। उस कुत्ते के सिवा उनके साथ कोई न रहा। ... जब इस तरह युधिष्ठिर दृढ़ धैर्य के साथ चलने लगे तब रथ के शब्द से पृथ्वी और आकाश को पूर्ण करते हुए देवराज इन्द्र उनके पास आकर बोले :-
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