पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/४१

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पहला खण्ड ] पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों का बालपन करके भीमसेन का नाश करना चाहिए। उनका नाश होने पर बाकी बचे हुए पाण्डवों को पकड़ कर बाँध रखना या और किसी तरह ठिकाने लगाना कुछ भी कठिन काम न होगा। जो कुछ हो, पाण्डवों को वर्तमान अवस्था में रखना अच्छा नहीं। वे हमारे लिए कंटक हो रहे हैं। उनके रहते हम लोगों को राज्य का सुख-भोग नहीं मिल सकता । इस तरह मन में विचार कर दुर्योधन सदा भीमसेन को मारने की घात में रहने लगा। सोचते सोचत एक बार भीमसेन को मारने की उसे एक युक्ति सूझी। गङ्गा के किनारे उसने सैकड़ों डेरे लगवा दिये और एक बहुत ही रमणीक खेल-कूद की जगह बनवाई । वहाँ खाने-पीने की सब सामग्री इकट्ठी की। सब तरह आगम से रहने का प्रबन्ध किया। इस प्रकार तैयारी करके भाइयों के पास जाकर दुर्योधन बोला : चलो हम सब लोग गङ्गा के किनारे जल-विहार करने चलें। वहाँ उपवन की शोभा देखने ही लायक है। ___ युधिष्ठिर सीधे-सादे आदमी थे । उनके मन में कपट तो था ही नहीं। इससे भाइयों-सहित गङ्गा तट पर जाने के लिए वे तत्काल राजी हो गये। कोई रथ पर सवार हुआ, कोई हाथी पर, कोई घोड़े पर । जल्द सब लोग गङ्गा के किनारे जा पहुँच । वहाँ उन्होंने देखा कि कपड़ों का एक शहर का शहर बसा हुआ है। कपड़े ही के बड़े बड़े मकान, कपड़े ही की अटारियाँ, कपड़े ही के फाटक । जगह जगह फौवारे चल रहे हैं, बाजार लगा हुआ है, उत्तम उत्तम फूल-बाग बने हुए हैं । यह सब ठाठ देख कर पाण्डवों को बड़ा आनन्द हुआ। वे प्रसन्नतापूर्वक घूम घूम कर वहाँ की शोभा देखने लगे। बड़े ही मनाहर फूलों, लताओं और सरोवरों से शोभित उपवन की कछ देर तक सैर करकं युधिष्ठिर आदि अपने डेरों में आये और भोजन करने लगे । कौरव और पाण्डव मिल कर साथ ही भोजन करने बैठ । अनेक प्रकार के षटरस व्यञ्जन बनाये गये थे। उनका स्वाद ले लेकर वे लोग आपस में एक दूसरे से उनकी प्रशंसा करने लगे । जिस जो चीज़ अच्छी लगती वह दूसरे को दे देता। इसी तरह करत करत दुष्ट दुर्योधन ने विष मिली हुई मिठाई भीमसन का दी । भीम को दुर्योधन पर किसी तरह का संदेह तो था ही नहीं; उन्होंने वह मिठाई खा ली । यह देख दुर्योधन मन ही मन हँसा । उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने समझा कि मेरा मतलब सिद्ध हो गया। भाजन हो चुकने पर कौरवों और पाण्डवों ने एकत्र होकर बड़े आनन्द से जल-विहार किया। जल में क्रीड़ा करत करत सन्ध्या हो गई। तब सब लोगों ने जल से निकल कर अपने अपने कपड़े और आभूषण पहने, और आराम करने की ठानी । पर विष के प्रभाव से भीमसेन बहोश होकर वहीं गङ्गा के किनारे पड़े रह गये। उनका शरीर काठ की तरह हो गया; हाथ-पैर हिलाने तक की शक्ति उनमें न रह गई । इस बात को सिर्फ दुर्योधन ने देखा, और किसी ने नहीं। जब से जल-विहार प्रारम्भ हुआ था तभी से दुर्योधन की दृष्टि भीमसेन पर थी। जब उसने देखा कि भीमसेन होश में नहीं, तब चुपचाप उनके पास जाकर लताओं से खूब मज़बूती के साथ उन्हें बाँधा और गङ्गा में डुबो दिया। यह पाप-कर्म करके प्रसन्नचित्त अपने डेरे को वह लौट आया। भीमसेन को दुर्योधन ने जब गङ्गा में डाला तब उन्हें बिलकल चेत न था । उसी दशा में गङ्गा के भीतर ही भीतर वे नागलोक में जा पहुँच । वहाँ के महा-विषधर नागों को इन्हें देख बड़ा क्रोध आया । उन्होंने कहा यह मनुष्य यहाँ कैसे आया ? वे अपने पैने दाँतों से भीमसेन को बार बार काटने लगे । फल यह हुआ कि सों का विष भीमसेन के शरीर में जाने से मिठाई के साथ खाया हुआ विष नष्ट हो गया। विष दूर हो जाने से भीमसेन को चेत हुआ । जिन लताओं से उनका शरीर बँधा था उन्हें भीमसेन ने एक ही झटके में तोड़-ताड़ डाला और लगे वहाँ के नागों का