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पहला खरह] पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति हे आर्य ! हमको अधर्म में लिप्त न कीजिए। पहले बड़े भाई का विवाह होना उचित है । इसलिए हमारी और पाञ्चाल-नरेश की भलाई का खयाल रख कर कर्तव्य ठीक कीजिए। हम लोगों को आप अपना अाज्ञाकारी समझिए। युधिष्ठिर भाइयों को उदास बैठे देख कर उनके मन की बात ताड़ गये। शायद इस बात से पीछे भाइयों में अनबन हो जाय, इस डर से युधिष्ठिर बहुत व्याकुल हुए। उन्होंने एकान्त में ले जाकर उनसे कहा : हमने यह निश्चित किया है कि द्रौपदी हमारी सबकी हो। इस कठिनता से पार पाने का यही एक उपाय देख पड़ता है। इससे माता की बात भी रह जायगी और हम लोगों में भी एक दूसरे के साथ ईर्ष्या करने का कोई कारण न रहेगा। इसी समय यादवों में श्रेष्ठ कृष्ण और बलदेव इस बात की खोज करते हुए कि, पाण्डव स्वयंवरसभा से कहाँ चले गये हैं, उस कुम्हार के घर जा पहुँचे। दूर से पाण्डवों को एक जगह बैठे देख वे जल्दी जल्दी आगे बढ़े और सब भाइयां से अच्छी तरह मिले। सबको बेहद खुशी हुई। तब युधिष्ठिर ने कुशल-प्रश्न के बाद पूछा : हे वासुदेव ! हम तो अपना वेश बदले हुए थे, हमें तुमने कैसे पहचाना ? कृष्ण ने हँस कर उत्तर दिया : राजन् ! आग छिपी रहने पर भी सहज ही में प्रकट हो जाती है। पाण्डवों के सिवा ऐसा कौन मनुष्य है जो इतना पराक्रम दिखला सकता है। हे कुरुओं में श्रेष्ठ ! हम लोगों के भाग्य से धृतराष्ट्र के पुत्रों की जालसाजी बेकार हुई और तुम लोग लाख के घर से बच गये। ईश्वर करे तुम्हारे फिर अच्छे दिन आवें । इस समय आज्ञा दीजिए, हम डेरे पर लौट जायें। यह कह कर दोनों भाई चले गये। जब पाण्डव लोग द्रौपदी को लेकर सभा-स्थल से चले तब यह जानने के लिए कि यह लोग कौन हैं और कहाँ जाते हैं, धृष्टद्यन ने छिपे छिपे उनका पीछा किया और उन्हें कुम्हार के घर में जाते देख पास ही एक गुप्त स्थान में वे छिप गये। इस स्थान से उन लोगों की बातचीत का कुछ अंश सुन करके वे पिता को सब हाल बताने के लिये शीघ्र ही राजसभा को लौट आये। अपनी कन्या को ऐसे ब्राह्मण-कुमारों के साथ जाते देख, जिनके न कुल का पता न शील का, राजा द्रुपद उदास बैठे थे। धृष्टद्युम्न को देखते ही वे अाग्रह से पूछने लगे : हे पुत्र ! द्रौपदी किसके साथ कहाँ गई ? फूलों की माला श्मशान में तो नहीं गिरी ? धृष्टद्युम्न ने धीरज देकर कहा : हे पिता ! पछताने का कोई कारण नहीं। हमने उनका पीछा करके उनके आचार-व्यवहार और बात-चीत का जो रङ्ग-ढङ्ग देखा उससे मालूम होता है कि वे क्षत्रिय हैं। कुछ दिनों से यह गप उड़ रही है कि पाण्डव लोग लाक्षाघर के साथ जल जाने से बच गये हैं और गुप्त वेश में घूम रहे हैं। निश्चय जानिए ये वही पाँचों भाई हैं। हमारे ही भाग्य से इन्होंने द्रौपदी को जीता है। अर्जुन के सिवा कर्ण के तेज को कौन सह सकता है ? भीम के सिवा शल्य को कौन जमीन पर पटकने की शक्ति रखता है ? पाण्डवों को छोड़ कर ऐसा कौन है जो दुर्योधन आदि बड़े बड़े राजों का सिर नीचा कर सके ? यह सुन कर द्रुपद को सन्तोष हुआ। उन्होंने पुरोहित को बुला कर कहा कि आप कुम्हार झी कुटी में जाकर निशाना मारनेवाले का कुल-शील आदि पूछ आइए। पुरोहित पाण्डवों के पास गये। वहाँ बड़ी बड़ी बातें बनाकर उन्होंने उनकी खूब प्रशंसा की । अनन्तर चतुरतापूर्वक वे कहने लगे: फा०८