पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२२१

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- में ११ १ सप्त मसमुल्लास : । ) है। थे । h जैसे सन्निपात उबरयुक मनुष्य अण्डच" बकता है वैसे ही अविद्वानों के कई व लेख को व्यर्थ समझना चाहिये ( प्रश्न) परमेश्वर रगी है । विरक १ ( उत्तूर ) दोनों में नहीं क्योंकि राग अपने से भिन्न उत्तम पदार्थों में होता है सो परमेश्वर से कोई पदक पृथ वा उत्तम नहीं इसलिये उस मे रग का सम्भव नहीं और जो प्राप्त को छों हु देवं उसका चिरक्त कहते हैं ईश्वर व्यापक होने से किसी पदार्थ को छोड़ ही नहीं सकता इसलिये विरक्त भी नहीं 1 (श्न ) ईश्वर में इच्छा है या नहीं ?( उत्तर ) बैंस इच्छा नहीं क्योंकि इच्छा भी अप्राप्त उत्तम और जिसकी प्राप्ति से सुख वि- शष वे क्री होती हैं तो ईश्वर में इच्छा हास, न उस से कोई अIत पदार्थ, न कोई उससे उत्तम और पूर्ण सुखयुक्त होने से सुख की अभिलाषा भी नहीं है इसलिये ईश्वर में इच्छा का तो संभव नहीं किन्तु ईक्षण अथोत् स ब प्रकार की विद्या का दर्शन और स ब खुष्टि का करना काता है वह ईश्वण है । इश्यादि स क्षिप्त विपयों से ही सज्जन लोग बहुत iवेस्तरण कर लेंगे । यह संक्षेप से ईश्वर का विषय लिख कर बंद का विष य लिखते हैं । - ९ 5 । यस्माांचों अपाक्षर यजपेस्मदपाकंन् । सामने यस्थ लोमान्यथडगिसो मुखं । स्कम्भन्नै घृदि कतमः स्विंद्व सः 1 अ वे : कों १० | प्रपा० २३ । अ० ४ । मै० २० ॥ जिस परमाRम से ऋग्वेद, यजुर्वेदसामवेद और अथर्ववेद प्रकाशित हुए हैं वह ौन सा देश है ? इसका ( उत्तर ) जो सब को उत्पन्न कर धारण कर रहा मैं परनामा हैं ! स्वंयभूथतथ्युतान् व्यदधाच्छाश्वती: सभ्यः ११ य० ० ४० । मं० ८ । जो स्वयम्भू, सर्वव्यापक, , सनातन, निराकार परमेश्वर है वह सनातन जीवरूप प्रजा के कल्याणार्थ यथावत् रीति पूर्वक वेद द्वारा सब विद्याओं का उपदेश करता है । ( प्रश्न ) परमेश्वर को आप निराकार मातने हो व साकार १ ! ( उत्तर ) निराकार मानते है ( श् ) जब निराकार है तो बेदृविद्या का उपदेश विना मुव के बच्चारण कैसे होसका दाग ? क्योंकि वणों में ता क उच्चारण - ! स्वदि स्थान, जिह्वा का प्रयत्न अवश्य होना चाहिये । ( उत्तर ) परमेश्वर के ?