शर्माजी बोले, जी हां, इस तहकीकातका अर्थ मैं समझता हूँ। घण्टेभरसे इसका तमाशा देख रहा हूँ। तहकीम हो चुकी या अभी कुछ कसर बाकी है?
मुख्तारन कहा, हुजूर, दारोगाजी जाने, मुझे क्या मतलब दारोगाजी बड़े चतुर पुरुष थे। मुख्तार साहबकी बातों से उन्होंने समझा था कि शर्माजीका स्वभाव भी अन्य जमींदारोंके सदृश है। इसीलिये वह बेखटके थे, पर इस समय उन्हें अपनी भूल ज्ञात हुई। शर्माजीके तेवर देखे, नेत्रोंसे क्रोधाग्निकी ज्वाला निकल रही थी, शर्माजीकी शक्तिशालीनतासे भलीभांति परिचित थे। समीप आकर बोले, आपके इस मुख्तारने मुझे बड़ा धोखा दिया, वरना मैं हलफसे कहता हूँ कि यहां यह आग न लगती। आप मेरे मित्र बाबू कोकिला सिंहके मित्र हैं और इस नातेसे मैं आपको अपना मुरब्बी समझता हूँ, पर इस नामरदूद बदमाशने मुझे बडा चकमा दिया। मैं भी ऐसा अहमक था कि इसके चक्करमें आ गया। मैं बहुत नादिम हू कि हिमाकतके बाइस जनाबको इतनी तकलीफ हुई। मैं आपसे मुआफीका सायल हूँ। मेरी एक दोस्ताना इल्तमाश यह है कि जितनी जल्दी मुमकिन हो इस शख्सको बरतरफ कर दीजिये। यह आपकी रियासतको तबाह किये डालता है। अब मुझे भी इजाजत हो कि अपने मनहूस कदम यहासे ले जाऊँ। में इलफसे कहता हूं कि मुझे आपको मुँह दिखाते शर्म आती है।
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यहां तो यह घटना हो रही थी, उधर बाबूलाल अपने