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बड़े घरकी बेटी
 


विचार था कि यदि बहुत कुछ सहन करने और तरह देनेपर भी परिवारके साथ निर्वाह न हो सके तो आये दिनकी कलहसे जीवनको नष्ट करने की अपेक्षा यही उत्तम है कि अपनी खिचड़ी अलग पकायी जाय।

आनन्दी एक बड़े कुलकी लड़की थी। उसके बाप एक छोटी-सी रियासतके ताल्लुकेदार थे। विशाल भवन, एक हाथी, तीन कुत्ते, बाज, बहरी, सिकरे, झाड़-फानूस, आनरेरी मजिस्ट्रेटी और ऋण, जो एक प्रतिष्ठित ताल्लुकेदारके योग्य पदार्थ हैं, वह सभी यहाँ विद्यमान थे। भूपसिंह नाम था। बड़े उदारचित्त, प्रतिभाशाली पुरुष थे। पर दुर्भाग्य लड़का एक भी न था। मात्र लड़कियाँ हुई और दैवयोगसे सब-की सब जीवित रहीं। पहली उमंग में तो उन्होंने तीन ब्याह दिल खोलकर किये, पर जो पंद्रह बीस हजार का कर्ज सिरपर हो गया तो आँखें खुली, हाथ समेट लिया। आनन्दी चौथी लड़की थी। वह अपनी सब बहिनोंसे अधिक रूपवती और गुणशीला थी। इसीसे ठाकुर भूप सिंह उसे बहुत प्यार करते थे। सुन्दर संतान को कदाचित् उसके माता-पिता भी अधिक चाहते हैं। ठाकुर साहव बडे़ धर्मसङ्कट में थे कि इसका विवाह कहाँ करें। न तो यही चाहते थे कि ऋणका बोझ बढ़े और न यही स्वीकार था कि उसे अपनेको भाग्यहीन समझना पड़े। एक दिन श्रीकंठ उनके पास किसी चन्देका रुपया मांगने आये। शायद नागरी-प्रचारक चन्दा था। भूपसिंह उनके स्वभावपर रीझ गये और धूमधाम से श्रीकंठ सिंहका आनन्दी के साथ विवाह हो गया।

आनन्दी अपने नये घरमे आई तो यहांका रङ्ग-ठङ्ग कुछ और