श्रीकण्ठ न उठे। इतने में लालबिहारीने फिर कहा, भाभी। भैया से मेरा प्रणाम कह दो। वह मेरा मुह नहीं देखना चाहते, इसलिये मैं भी अपना मुँँह उन्हे न दिखाऊँँगा।
लालबिहारी इतना कहकर लौट पड़ा और शीघ्रता से दरवाजे की ओर बढ़ा। अन्त में आनन्दी कमरे से निकली और उसका हाथ पकड़ लिया। लालबिहारीने पीछे फिर कर देखा और आँखो मे आंसू भर बोला, मुझे जाने दो।
आनन्दी—कहा जाते हो?
लालबिहारी—जहाँ कोई मेरा मुँह न देखें।
आनन्दी—मैं न जाने दूँगी।
लालबिहारी—मैं तुम लोगों के साथ रहने योग्य नहीं हूँ।
आनन्दी—तुम्हे मेरी सौगन्ध,अब एक पग भी आगे न बढ़ाना।
लालबिहारी—जबतक मुझे यह न मालूम हो जाय कि भैया का मन मेरी तरफ से साफ हो गया, तबतक मैं इस घर में कदापि न रहूँगा।
आनन्दी—मैं ईश्वर की साक्षी देकर कहती हूँ कि तुम्हारी ओर से तनिक भी मैल नहीं है।
अब श्रीकंठ का हृदय भी पिघला। उन्होंने बाहर आकर लालबिहारी को गले लगा लिया। दोनों भाई खूब फूट फूट कर रोये। लालबिहारीने सिसकते हुए कहा, भैया अब कभी मत कहना कि तुम्हारा मुँँह न देखूँँगा। इसके सिवा आप जो दण्ड देंगे वह मैं सहर्ष स्वीकार करूगा।
श्रीकठने कांपते हुए स्वर से कहा—लल्लू! इन बातों को बिल—