पहले संस्करणकी
उर्दू-संसारके हिन्दू-महारथियोंमे प्रेमचन्दजीका स्थान बहुत ऊँचा है। अनेक नामोंसे आपकी पुस्तकें उर्दू-संसारकी शोभा बढ़ा रही हैं। उर्दू-पत्रोंने आपकी रचनाओंकी मुक्तकंठसे प्रशंसा की हैं।
हर्षकी बात है कि मातृभाषा हिन्दीने कुछ दिनों से आपके चित्तको आकर्षित किया है। प्रेमचन्दजीने पूजनार्थ नागरी-मन्दिर में प्रवेश किया है और माता ने हृदय लगाकर अपने इस यशशाली प्रेमपुत्र को अपनाया है। इन प्रतिभाशाली लेखक महानुभाव ने इतनी जल्दी हिन्दी संसार में इतना नाम कर लिया है कि आश्चर्य होता है। आपकी कहानियां हिन्दी संसार में अनूठी चीज है। हिन्दी की पत्र पत्रिकाएं आपके लेखों के लिये लालायित रहती हैं।
कुछ लोगों का विचार है कि आपकी गल्पें साहित्यमार्तण्ड रवीन्द्र बाबूकी रचना से टक्कर लेती हैं। ऐसे विद्वान और प्रसिद्ध लेखकके विषय में विशेष कुछ लिखना अनावश्यक और अनुचित होगा।
अहरौला, आजमगढ़ ८वीं जून, १९१७ ई० |
मन्नन द्विवेदी गजपुरी |